Ek Yuva Vichar Ek Ummid Nayi

15/recent/ticker-posts

Are You Hungry

Corona LOCKDOWN Worldwide Trading Vaccine In Your Hands

दुनिया की जनसंख्या का एक तिहाई कोरोनोवायरस के चलते लॉकडाउन पर है,

डब्ल्यूएचओ ने भी ये कह चुका है कि दुनिया के सभी देशों को सोशल डिस्टेंशिंग का पालन करना चाइये । इसके अलावा लोगों के बाहर निकलने पर प्रतिबंध लगाना होगा। वरना  इस महामारी को रोका नहीं जा सकता लॉकडाउन से कोरोनावायरस को फैलने से रोकने में मदद मिलेगी। यह दुनिया के लिए सबसे बेहतरीन एक विकल्प है।कोरोनावायरस अब तक दुनिया के 212 कन्ट्रीज और टेरिटरीज  में  फैल चुका है। इसकी चपेट में 3,646,834 लाख लोग आ चुके हैं। 252,442 लोगों की जान गई है।

लॉकडाउन
आइये ज्यादा जाने कोरोना के बारे में  - क्या संभव है  प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना का इलाज़ ?
 कोरोना महामारी में देश सेवा            -  एक भारतीय जिस ने जीता पुरे देश का दिल   
 एक सकारात्मक सोच                       -  कोरोना कैसे रखे खुद को रखे फिट    

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पिछले महीने कोरोना पर एक बयां जारी किया था जिस में कहा था की इस महामारी से 60 हजार मौतें होने की आशंका है लेकिन अब इस बयान से पलट गए हैं। रविवार को फॉक्स न्यूज के साथ हुई टाउन हॉल मीटिंग में उन्होंने कहा कि ‘महामारी से हम 75, 80 हजार से 1 लाख लोगों को खोने वाले हैं। ये डरावना है लेकिन हम एक भी जान नहीं खोने देना चाहते।’ राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा की अगर हम सही से कदम नहीं उठाते तो ये संख्या 10 लाख होती ,सोचिए की ये मंजर कितना डरने वाला होता दूसरी और अमेरिका कोरोना महामारी की चपेट में है और न्यूयॉर्क इसका बड़ा सेंटर है। यहां के अस्पतालों में डॉक्टर, नर्स और स्वास्थ्यकर्मी की कमी हो गई है। हालात ये हैं कि शहर के ज्यादातर अस्पतालों में अब मरीजों के इलाज में नॉन-मेडिकल स्टाफ की मदद लेनी पड़ रही है। इनमें कुक, रिसेप्शनिस्ट, सफाईकर्मी और सिक्योरिटी गार्ड प्रमुख हैं जिन्हें मरीजों के बेड चेक करने से साथ उनका मेडिकल रिकॉर्ड रखने की जिम्मेदारी दी गई है। वे मरीजों के इलाज में भी मदद कर रहे हैं। यही कर्मचारी मरीज के रिश्तेदारों के हॉस्पिटल में आने वाले फोन भी रिसीव कर रहे हैं। इनमें से कई संक्रमण के चलते अपनी जान गंवा चुके हैं।

 Vaccine ही महामारी को समाप्त करने का लक्ष्य होना चाहिए

vaccine for all should be the goal to end this pandemic, एक सवाल आज अगर आप के दिमाग में तो वो ये की आखिर कब ये दुनिया वापिस अपनी रफ़्तार में वापिस आएगी , आप को लगता है की आखिर कब तक ऐसे घर में या डर डर कर जीना पड़ेगा कब तक आप वापिस बिना डरे काम पर नहीं जा सकते कब ये दुनिया फिर से बहार आप का वेलकम करेगी? तो इस का एक ही उत्तर है जब ये दुनिया कोरोना महामारी से लड़ने के लिए कोई दवा या टिका न बना ले | एक वैक्सीन ढूँढना ही पूरी दुनिया का पहला कदम है, क्यूंकि जब तक वैक्सीन मिल
दुनिया का पहला कदम है
नहीं जाती तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं होगा इस लिए पूरी दुनिया को सुरक्षित करना होगा। दुनियाभर में कोरोना वायरस ने हड़कंप मचा दिया है इसकी रोकथाम में सरकारों के पसीने छूट गए हैं। हॉल, मॉल, स्‍कूल, कॉलेज और दफ्तर सब बंद हैं कामकाम ठप पड़ता दिख रहा है।सरकारी एजेंसियां इस पर अंकुश लगाने के लिए रात-दिन वैक्‍सीन तैयार करने में जुटी हैं,यह अलग बात है कि उनके हाथ सफलता नहीं लगी है।आज सारी दुनिया एक ही होड़ में लगी है कोविद 19 महामारी की कोई दवा या टिका सबसे पहले इस दुनिया में लाये, आज दुनिया के तमाम देशो का सरकारी तंत्र इस होड़ में लगा है की वो इस दवा को सबसे पहले ला कर अपना नाम इतिहास में दर्ज करे, वहीँ दुनिया के वैज्ञानिक इस बात को मानते है की कोरोना की वैक्सीन लाने में 18 महीने का समाये लग सकता है |  

 Vaccine के बाद इसका परीक्षण ट्रायल में लग सकता हैं समय

वैक्‍सीन बनने के बाद इसका परीक्षण अमूमन जानवरों पर होता है. लोगों पर सीधे इनका परीक्षण कभी नहीं किया जाता है. इसे लेबोरेटरी में बनाया जाता है. इसमें काफी समय लगता है. सार्वजनिक उपयोग के लिए दवा नियामक काफी जांचने-परखने के बाद इसकी अनुमति देते हैं |
वेस्‍ट वर्जीनिया यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ इवान मार्टिनेज कहते हैं कि क्‍लीनिकल टेस्‍ट में फोकस सुरक्षा पर होता है. रोगियों को देने से पहले वैक्‍सीन स्‍वस्‍थ वयस्‍क को दी जाती है. ये टेस्‍ट चरणबद्ध तरीके से किए जाते हैं. अमूमन जानवरों पर सफलता मिलने पर इसका परीक्षण इंसानों पर किया जाता है |

Vaccine के लिए 23 देशों का एकसाथ आना 48हजार करोड़ की मदद

इस समय दुनियाभर के कई देश कोरोना वायरस के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं।और हर कोई इस महामारी से निजात पाना चाहता है आज हर जनमानस इस महामारी से परेशां है, दुनिया के तमाम देश सिर्फ अपने नागरिको की सुरक्षा के लिए Vaccine बनाने के लिए एक साथ आये है।
23 देशों का एकसाथ आना
दुनिया के 23 देशों ने कोरोना से निपटने के लिए कुल मिलाकर 8 बिलियन डॉलर यानि (करीब 60 हजार 434 करोड़ रुपए) देने की घोषणा की है। इस रकम को कोरोना की जांच, इलाज और इसके लिए टीका तैयार करने पर खर्च होगी। सोमवार को एक वर्चुअल प्लेजिंग कॉन्फ्रेंस में देशों ने अपनी ओर से आर्थिक मदद देने का ऐलान किया। यूरोपियन यूनियन, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, सऊदी अरब, नॉर्वे, स्पेन और यूके ने एक साथ मिलकर इस कॉन्फ्रेंस की मेजबानी की थी। 


अफवाह और फेक न्यूज रोकने के लिए 49 करोड़ रुपये खर्च करेगी गूगल

दुनिया को इस महामारी के आपातकालीन समय की स्थिति से निपटने के लिए गूगल को एक कदम उठाना पड़ा है । ये दुनिया इस समय कोरोना वायरस के खिलाफ महाजंग लड़ रही हैं। इस के बीच दुनिया को एक और समस्या से युद्ध लड़ना पड़ रहा है।इसके लिए वायरस से संक्रमित मरीज के इलाज के लिए एक मानक तरीके पर काम चल रहा है और इस मामले से जुड़े लोगों को सही जानकारी देना भी एक चुनौती बन गया है।हालांकि, इस बीच एक ऐसी भी चीज है जिसने इस लड़ाई को और भी मुश्किल कर दिया है। यह है कोरोना वायरस को लेकर फैलाई जा रही फेक न्यूज। चाहे फिर वो दवा से लेकर सोशल डिस्टन्सिंग या कोई और जानकारी जो लोगो को भ्रमित करती है और देश की सरकारों को इस महामारी से निपटने में दिक्कत देती हो।


अफवाह और फेक न्यूज 
दरअसल, इन दिनों कोरोना वायरस को लेकर तमाम तरह के भ्रम और झूठी खबरें फैलाई जा रही हैं। ऐसे में अब गूगल फेक न्यूज के खिलाफ बड़ा कदम उठाने जा रही है। दुनियाभर में कोरोना वायरस से जुड़ी झूठी जानकारियों से निपटने के लिए गूगल 65 लाख डॉलर (करीब 49 करोड़ रुपए) खर्च करेगी। गूगल इस राशि के जरिए फैक्ट चेकर्स और गैर-लाभकारी संगठनों को बढ़ावा देगी, जो कोरोना वायरस महामारी से जुड़े मामलों की तथ्यों के आधार पर जांच करेंगे।

गूगल ने अपने एक ब्लॉग में बताया है कि स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि अचानक से सूचनाओं की आई बाढ़ से लोगों के लिए इस महामारी के बारे में विश्वसनीय जानकारी जुटाना मुश्किल हो गया है। कंपनी ने कहा कि लोगों को गलत खबरों और जानकारियों से बचाने में मदद के लिए वैज्ञानिकों, पत्रकारों, लोकप्रिय लोगों और प्रौद्योगिकी मंचों के साथ व्यापक प्रतिक्रिया की जरूरत है। गूगल ने कहा कि हम दुनियाभर में भ्रामक जानकारियों से निपटने के लिए फैक्ट-चेकर्स और गैर-लाभकारी संगठनों की मदद के लिए 65 लाख डॉलर मुहैया करा रहे हैं।  गूगल ने आगे कहा कि स्वास्थ्य संस्थाओं और फैक्ट-चेकर्स को उन विषयों को चुनने में मदद करनी चाहिए, जिसके बारे में लोग रोज ऑनलाइन सर्च कर रहे हैं। 

हैप्पीनेस इंडेक्स-2019 की रिपोर्ट 

हैप्पीनेस इंडेक्स- 2019 में दुनिया के टॉप-3 खुशहाल देश फिनलैंड, डेनमार्क और नार्वे हैं। इन तीनों में अब तक कोरोना से 905 लोगों की मौत हुई है। हैप्पीनेस इंडेक्स के मुताबिक दुनिया के तीन सबसे बदहाल और पिछड़े देश दक्षिणी सूडान, सेंट्रल रिपब्लिकन अफ्रीका और अफगानिस्तान हैं। यहां अब तक कोरोना से कुल 72 मौतें हुई हैं। यानी जिन देशों में स्वास्थ्य सुविधाएं, रहन-सहन, जीवन स्तर उच्च श्रेणी का है, वहां पर कोरोना महामारी का असर ज्यादा हुआ है, जबकि जहां पर भुखमरी, स्वास्थ्य सेवाएं, गंदगी और जीवन निम्न स्तर का है, वहां पर कोरोना का असर कम है। कोरोना से टॉप-3 खुशहाल देशों में टॉप-3 बदहाल देशों से करीब 13 गुना ज्यादा मौतें हुई हैं। जबकि 9 गुना ज्यादा केस आए हैं।



Post a Comment

0 Comments