संकट के बीच डॉक्टर की तरफ से इलाज ढूंढने के लगातार प्रयास,
कोरोना संक्रमितों की जांच करने स्वास्थ्य विभाग की टीम पर लोगों ने शयद भारत में ही पथराव किया हो ये कारनामें सिर्फ भारत में ही संभव है जहाँ स्वास्थ्यकर्मी को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा हो । उपद्रवि बैरिकेड्स भी तोड़ देते है कभी महिला कर्मचारियों के सामने नंगे घूमने लग जाते है , पुलिस के साथ लड़ना उनके कपड़ो पर थूकना ये सब भारत में ही हो सकता है , इस के बीच भी ये सब लोग अपनी जान की परवाह किये बिना देश सेवा में लगे है| इन लोगो के खिलाफ शासकीय कार्य में बाधा का केस दर्ज भी हो रहे है । अब सवाल ये उठता है की जो लोग ऐसे कर रहे है क्या वो लोग इंसान नहीं क्या उनको ये समझ नहीं या सिर्फ वो लोग इंसानियत के दुश्मन हैं। सर्कार को ऐसे लोगो सख्त सजा देनी होगी ।
अगर क्लिनिकल ट्रायल सफल होता है तो कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों के रक्त प्लाज्मा से इस रोग से पीड़ित अन्य मरीजों का उपचार किया जा सकेगा। एम्स के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर नवल विक्रम ने बताया कि कोरोना से ठीक हो चुके एक व्यक्ति के खून से कोरोना पीड़ित चार लोगों का इलाज किया जा सकता है। एम्स के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर नवल विक्रम के मुताबिक यह उपचार प्रणाली इस धारणा पर काम करती है कि वे मरीज जो किसी संक्रमण से उबर जाते हैं उनके शरीर में संक्रमण को बेअसर करने वाले प्रतिरोधी एंटीबॉडीज विकसित हो जाते हैं। इसके बाद नए मरीजों के खून में पुराने ठीक हो चुके मरीज का खून डालकर इन एंटीबॉडीज के जरिए नए मरीज के शरीर में मौजूद वायरस को खत्म किया जाता है।
दरअसल जब कोई वायरस व्यक्ति पर हमला करता है तो उसके शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज कहे जाने वाले प्रोटीन विकसित करती है। अगर कोई संक्रमित व्यक्ति पर्याप्त मात्रा में एंटीबॉडीज विकसित करता है तो वह वायरस से होने वाली बीमारियों से उबर सकता है।
कान्वलेसन्ट प्लाज्मा थैरेपी के पीछे आइडिया यह है कि इस तरह की रोग प्रतिरोध क्षमता रक्त प्लाज्मा थैरेपी के जरिए एक स्वस्थ व्यक्ति से बीमारी व्यक्ति के शरीर में ट्रांसफर की जा सकती है। कान्वलेसन्ट प्लाज्मा का मतलब कोविड-19 संक्रमण से ठीक हो चुके व्यक्ति से लिए गए रक्त के लिक्वेड पार्ट से है। इस थैरेपी में ठीक हो चुके लोगों का एंटीबॉडीज से समृद्ध रक्त का इस्तेमाल बीमार लोगों को ठीक करने में किया जाएगा।
क्या संभव है प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना का इलाज़ ? |
क्या संभव है प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना का इलाज़ ?
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने रक्त प्लाज्मा थैरेपी से कोविड-19 संक्रमित मरीजों के उपचार के ट्रायल की अनुमति दे दी है। आईसीएमआर ने इस क्लिनिकल ट्रायल में शामिल होने के लिए विभिन्न संस्थाओं को न्योता दिया है। इस अध्ययन का मकसद यह पता करना होगा कि प्लाज्मा थैरेपी (Convalescent Plasma Therapy) इस रोग के इलाज में कितनी असरदार है? यह भी बात गौर करने वाली है कि महामारी के केंद्र चीन में इस विधि से इलाज में सकात्मक नतीजे आए हैं। समझा जा रहा है कि प्लाज्मा तकनीक कोविड-19 संक्रमण के इलाज में उम्मीद की एक किरण हो सकती है।
एक डोनर के प्लाज्मा का चार मरीजों में इस्तेमाल:
दिल्ली AIIMS के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने उम्मीद जताई है कि कोरोनावायरस (Coronavirus) के ठीक हो चुके मरीजों का खून कोविड19 (COVID19) के मौजूदा मरीजों के इलाज में काम आ सकता है. उन्होंने कहा कि कन्वर्जन प्लाज्मा एक थेरेपी है, जिसे कोरोना के मरीजों को ठीक करने के एक विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है. प्लाज्मा थेरेपी तकनीकी तौर पर कॉन्वेलेसेंट प्लाज्मा थेरेपी (Convalescent Plasma Therapy) कहलाती है.
न्यूज एजेंसी ANI की एक रिपोर्ट के मुताबिक, डॉ. गुलेरिया ने बताया कि जब कोविड19 का मरीज ठीक हो जाता है तो उसका शरीर इन्फेक्शन से लड़ने में सक्षम होता जाता है. इसके लिए शरीर एंटीबॉडीज प्रॉड्यूस करता है, जो खून में रहते हैं. यही कारण है कि डॉक्टर कोरोना के ठीक हो चुके मरीजों से इस महामारी से लड़ रहे दूसरे मरीज को ब्लड डोनेट करने के लिए कह सकते हैं ताकि उसके इम्यून सिस्टम को बूस्ट मिल सके. इस तकनीक में ठीक हो चुके रोगी के शरीर से ऐस्पेरेसिस विधि से खून निकाला जाएगा। इस विधि में खून से सिर्फ प्लाज्मा या प्लेटलेट्स जैसे अवयवों को निकालकर बाकी खून को फिर से उस डोनर के शरीर में वापस डाल दिया जाता है। प्रोफेसर नवल विक्रम के मुताबिक एक व्यक्ति के प्लाज्मा से चार नए मरीजों को ठीक करने में इसका इस्तेमाल हो सकता है। दरअसल एक व्यक्ति के खून से 800 मिलीलीटर प्लाज्मा लिया जा सकता है। वहीं कोरोना से बीमार मरीज के शरीर में एंटीबॉडीज डालने के लिए लगभग 200 मिलीलीटर तक प्लाज्मा चढ़ाया जा सकता है। इस तरह एक ठीक हो चुके व्यक्ति का प्लाज्मा 4 लोगों के उपचार में मददगार हो सकता है। उन्होंने बताया कि यह सभी रोगियों को देने की जरूरत नहीं हैं। जिन रोगियों की तबीयत ज्यादा खराब है, उन्हीं को यह दिया जाए तो ज्यादा बेहतर है क्योंकि अभी देश में ठीक हो चुके रोगियों की संख्या बहुत कम है जबकि नए मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं। डॉक्टर नवल विक्रम के मुताबिक पहले भी सार्स और स्वाइन फ्लू जैसे कई संक्रामक रोगों में इसका इस्तेमाल हो चुका है।
पांच मेडिकल कॉलेजों को ट्रायल की अनुमति:
देश के पांच आयुर्विज्ञान कॉलेज और अस्पतालों में इसका क्लीनिकल ट्रायल किया जाएगा। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने बताया कि तिरुवनंतपुरम स्थित चित्रा तिरुनाल आयुर्विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान को क्लीनिकल ट्रायल के तौर पर सीमित संख्या में इस तकनीक के इस्तेमाल की अनुमति मिली है। चित्रा तिरुनाल आयुर्विज्ञान संस्थान की निदेशिका डॉ. आशा किशोर ने कहा कि कोरोना वायरस से संक्रमण के ठीक हो चुके मरीज के रक्त प्लाज्मा की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता के लिए उन्होंने रक्त दान की उम्र सीमा में रियायत देने की मांग की है।
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आपको जीवन में आगे बढ़ने,और जीवन में आई कठिनाइयों का सामना करने मैं हिम्मत और साहस की जरुरत है अगर आप में ये साहस है तो आप खुद को और इस देश को बदल सकते है,खोजोंगे अगर तो रास्ते मिलेंगे, हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं,जिस दिन लोग ऐसी सोच रखना शुरू कर देंगे, उस दिन हमारा भारत सही मायने मे महान कहलाएगा,धन्यवाद, |जय हिन्द| |जय भारत |अगर आप को मेरे विचार अच्छे लगे तो प्लीज़,आप अपने विचार दें||