इस संसार में सबसे सहनशील केवल एक शब्द मां ही होता है,
‘नारी’। एक ऐसा शब्द जिसमे इतनी ऊर्जा है, कि इसका उच्चारण ही मन-मस्तक को झंकृत कर देता है और इसका पूर्ण स्वरूप मातृत्व में विकसित होता है।जो इस ब्रह्माण्ड को संचालित करने वाले विधाता है, उसकी प्रतिनिधि है नारी। अर्थात् समग्र सृष्टि ही नारी है, इसके इतर कुछ भी नही है। इस सृष्टि में मनुष्य ने जब बोध पाया और उस अप्रतिम ऊर्जा के प्रति अपना आभार प्रकट करने का प्रयास किया तो बरबस मानव के मुख से निकला कि तुम ही माता हो, तुम ही पिता हो, तुम ही बंदु हो ,तुम ही विद्या हो ,अक्सर यह होता है कि जब इस सांसारिक आवरण में फंसते या मानव की किसी चेष्टा से आहत हो जाते हैं तो बरबस हमें एक ही रूप याद आता है और वह है मां। अत्यंत दुख की घड़ी में भी हमारे मुख से जो ध्वनि उच्चारित होती है वह सिर्फ मां ही होती है। क्योंकि मां की ध्वनि आत्मा से ही गुंजायमान होती है । और शब्द हमारे कंठ से निकलते हैं, लेकिन मां ही एक ऐसा शब्द है जो हमारी रूह से निकलता है।
‘माँ’ शब्द एक ऐसा शब्द है जिसमे समस्त संसार का समा जाता है । जिसके उच्चारण मात्र से ही इंसान अपने हर दुख दर्द का अंत महसूस करता है। ‘माँ’ की ममता और उसके आँचल की महिमा को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है, उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। "रामायण" में भगवान श्रीराम जी ने कहा है कि ‘‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।’’ अर्थात, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। कहा जाए तो जननी और जन्मभूमि के बिना स्वर्ग भी बेकार है क्योंकि माँ कि ममता कि छाया ही स्वर्ग का एहसास कराती है।
एक शब्द मां बस |
हमने हमेशा से सुना है की एक माँ ही अपने बच्चे की पहली गुरु होती है वो इस लिए क्यों की एक माँ आधे संस्कार तो बच्चे को अपने गर्भ में ही दे इसका उद्धरण हम को महाभारत महाकाव्यका अभिमन्यु की कहानी से मिल जाता है जब चक्रव्यूह-भेदन की शिक्षा वो अपने माँ के गर्व से सिख कर आये थे, अभिमन्यु चक्रव्यूह के 6 द्वार को भेद कर 7 वे द्वार से बहार नहीं निकल पाए क्यों की उनकी माता को नींद आ गयी थी, ये अभिमन्यु ने तब सीखा जब वो माता के गर्व में थे, यही माँ की शक्ति को दशार्ता है, वह माँ ही होती है पीडा सहकर अपने शिशु को जन्म देती है। और जन्म देने के बाद भी मॉं के चेहरे पर एक सन्तोषजनक मुस्कान होती है इसलिए माँ को सनातन धर्म में भगवान से भी ऊँचा दर्जा दिया गया है।
भारतीय संस्कृति पढ़े - VandeBharat Mission Evacuation
कबीर ने तो स्वयं समेत सभी शिष्यों को भी स्त्री रूप में ही संबोधित किया है वे कहते हैं
संत कबीर स्त्री मानते है यह स्त्री–पुरुष का मिलना ही कल्याण है मोक्ष और सुगति है। भारतीय संस्कृति में तो स्त्री ही सृष्टि की समग्र अधिष्ठात्री है। पूरी सृष्टि ही स्त्री है, क्योंकि इस सृष्टि में बुद्दि, निद्रा, सुधा, छाया, शक्ति, तृष्णा, जाति, लज्जा, शांति, श्रद्धा, चेतना और लक्ष्मी आदि अनेक रूपों में स्त्री ही व्याप्त है। इसी पूर्णता से स्त्रियां भाव-प्रधान होती हैं। सच कहिए तो उनके शरीर में केवल हृदय ही होता है, बुद्दि में भी हृदय से प्रभावी रहती है, तभी तो गर्भधारण से पालन पोषण तक असीम कष्ट में भी उन्हें आनंद की अनुभूति होती है। कोई भी हिसाबी चतुर यह कार्य एक पल भी नहीं कर सकता। भावप्रधान नारी चित्त ही पति, पुत्र और परिजनों द्वारा वृद्दावस्था में भी अनेकविधि कष्ट दिए जाने के बावजूद उनके प्रति शुभशंसा रखती है, उनका बुरा नहीं करती। जबकि पुरुष तो ऐसा कभी कर ही नहीं सकता, क्योंकि नर विवेक प्रधान है, हिसाबी है, विवेक हिसाब करता है, घाटा-लाभ जोड़ता है और हृदय हिसाब नहीं करता।
कैसे हुई MOTHER DAY की शुरुआत और किधर ?
9 मई 1914 को अमेरिकी प्रेसिडेंट वुड्रो विल्सन ने एक लॉ पास किया था जिसमें लिखा था कि मई महीने के हर दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाएगा, जिसके बाद मदर्स डे अमेरिका, भारत और कई देशों में मई महीने के दूसरे रविवार को मनाया जाने लगा , एक्टिविस्ट एना जार्विस अपनी मां से बहुत प्यार करती थीं, उन्होंने न कभी शादी की और न कोई बच्चा था. वो हमेशा अपनी मां के साथ रहीं. वहीं, मां की मौत होने के बाद प्यार जताने के लिए उन्होंने इस दिन की शुरुआत की. फिर धीरे-धीरे कई देशों में मदर्स डे (Mother's Day) मनाया जाने लगा.
माँ क्या किसी MOTHER DAY की मोहताज या ये सब आज कल के रिवाज़ मात्र
सम्मानपूर्ण जीवन जीने का अधिकार |
365 अपने परिवार के लिए लगतार काम करने वाली माँ , बेहन , दोस्त , टीचर , साथ में काम करने वाली महिला ,बस में सफर करने वाली , स्कूल जाने वाली , छोटी बच्ची या कोई भी क्या खुनी सड़को पर सुरक्षित है,कुछ होता है तो हम सोचते है ये क्या हो रहा है इस समाज को । हे भगवान ऐसे क्यू हो रहा है, क्या इस समाज की आँखों का पानी मर गया ,फिर हम में से कहते है इंसान जानवर बनता जा रह है , आज कहने को हर देश में कहा जाता है लड़का लड़की में कोई फ़र्क़ नहीं , मगर क्या ये सच है ? नारी की समानता, उस की स्वतंत्रता, लोकतांत्रिक मूल्य, निर्णय लेने का अधिकार, सम्मानपूर्ण जीवन जीने का अधिकार तो बहुत दूर की बातें हैं,बल्कि यह और सुनने को मिलता है कि आज चलती बस में किसी महिला का रपे हो गया , चलती गाडी से निचे फेक दिया , लड़की पर तेज़ाब फेक दिया , जब महिलाओं के विरुद्ध हिंसा की घटनाएं सामने आती हैं| तो मैं ये कैसे कह दूँ की Happy Mothers Day , आज भारत की बात करे तो कहीं न कहीं ऐसे रोज हो रहा है , हम समाचार देखते है और ये सोच कर खुश होते है की हम सेफ है, और खाना कर सो जाते है, लेकिन हम कोई जरुरी कदम नहीं उठाते ,मगर उस का क्या जिस की सारी जिंदगी ही बर्बाद हो गयी, न्याय मिलने में सालो लग जाते है, और समाज कहता है Happy Mothers Day ,जहाँ इस देश में दहेज़ के लिए एक माँ को एक दुल्हन को जला दिया जाता हो तो कैसे कह दे की सब ठीक है|
जो अपने घर की माँ को माँ समझे और घर के बहार एक महिला को सिर्फ जिस्म उस समाज को ये धारणा बदलनी होगी क्यू की भारतीय संस्कृति में महिला पूजनीय है , और जब तक घर ,सड़क, ट्रैन, बस ,टैक्सी, स्कूल, कॉलजे , एक नारी के लिए सुरक्षित नहीं तब तक , कैसे HAPPY MOTHER DAY कह सकते है?
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आपको जीवन में आगे बढ़ने,और जीवन में आई कठिनाइयों का सामना करने मैं हिम्मत और साहस की जरुरत है अगर आप में ये साहस है तो आप खुद को और इस देश को बदल सकते है,खोजोंगे अगर तो रास्ते मिलेंगे, हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं,जिस दिन लोग ऐसी सोच रखना शुरू कर देंगे, उस दिन हमारा भारत सही मायने मे महान कहलाएगा,धन्यवाद, |जय हिन्द| |जय भारत |अगर आप को मेरे विचार अच्छे लगे तो प्लीज़,आप अपने विचार दें||