इंसान के जीवन में गुरु/शिक्षक का होना बेहद ज़रूरी
किसी भी इंसान के जीवन में गुरु/शिक्षक का होना बेहद ज़रूरी होता है। हम यहाँ सिर्फ स्कूल या कॉलेज के शिक्षकों/गुरुओं की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि हम हर उस व्यक्ति की बात कर रहे हैं, जो जीवन के किसी भी मोड़ पर आपको कुछ नया, कुछ उपयोगी सिखाये या जीवन में आपका मार्गदर्शन करे। यानि कि, शिक्षक/गुरु हर वो इन्सान हो सकता है जिसने आपको जीवन में कोई भी बहुमूल्य सीख दी हो।वैसे तो शिक्षक या गुरुओं का शुक्रिया-अदा करने के लिए जीवन कम होता है, लेकिन साल के इस एक विशेष दिन (5 सितंबर) को शिक्षकों दिवस के रूप में सालों से मनाया जाता रहा है। इस दिन हमारे देश के प्रथम उप-राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था।
डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन (5 सितम्बर 1888 – 17 अप्रैल 1975) :
1.भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति (1952 - 1962) और द्वितीय राष्ट्रपति रहे।
2. वे भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद, महान दार्शनिक और एक आस्थावान हिन्दू विचारक थे।
3. सन् 1954 में भारत सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया था।
4. डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिन (5 सितम्बर) भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
भारत के प्रथम उप-राष्ट्रपति (1952 - 1962) |
आइए, हम आपको डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन की 8 खास बातें बताते हैं
1 दक्षिण भारत के तिरूतनी नाम के एक गांव में 1888 को प्रकांड विद्वान और दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म हुआ था। वे बचपन से ही मेधावी थे। उन्होंने दर्शन शास्त्र में एम.ए. की उपाधि ली और सन् 1916 में मद्रास रेजीडेंसी कॉलेज में दर्शनशास्त्र के सहायक प्राध्यापक नियुक्त हो गए। इसके बाद वे प्राध्यापक भी रहे। डॉ. राधाकृष्णन ने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से विश्व को भारतीय दर्शनशास्त्र से परिचित कराया। सारे विश्व में उनके लेखों की प्रशंसा की गई।
2 शिकागो विश्वविद्यालय ने डॉ. राधाकृष्णन को तुलनात्मक धर्मशास्त्र पर भाषण देने के लिए आमंत्रित किया। वे भारतीय दर्शन शास्त्र परिषद् के अध्यक्ष भी रहे। कई भारतीय विश्वविद्यालयों की भांति कोलंबो एवं लंदन विश्वविद्यालय ने भी अपनी-अपनी मानद उपाधियों से उन्हें सम्मानित किया।
3 विभिन्न महत्वपूर्ण उपाधियों पर रहते हुए भी उनका सदैव अपने विद्यार्थियों और संपर्क में आए लोगों में राष्ट्रीय चेतना बढ़ाने की ओर रहता था।
4 डॉ. राधाकृष्णन अपने राष्ट्रप्रेम के लिए विख्यात थे, फिर भी अंग्रेजी सरकार ने उन्हें सर की उपाधि से सम्मानित किया क्योंकि वे छल कपट से कोसों दूर थे। अहंकार तो उनमें नाम मात्र भी न था।
5 भारत की स्वतंत्रता के बाद भी डॉ. राधाकृष्णन ने अनेक महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। वे पेरिस में यूनेस्को नामक संस्था की कार्यसमिति के अध्यक्ष भी बनाए गए। यह संस्था संयुक्त राष्ट्र संघ का एक अंग है और पूरे संसार के लोगों की भलाई के लिए अनेक कार्य करती है।
6 सन् 1949 से सन् 1952 तक डॉ. राधाकृष्णन रूस की राजधानी मास्को में भारत के राजदूत पद पर रहे। भारत रूस की मित्रता बढ़ाने में उनका भारी योगदान रहा था।
7 सन् 1952 में वे भारत के उपराष्ट्रपति बनाए गए। इस महान दार्शनिक शिक्षाविद और लेखक को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने देश का सर्वोच्च अलंकरण भारत रत्न प्रदान किया। 13 मई, 1962 को डॉ. राधाकृष्णन भारत के द्वितीय राष्ट्रपति बने। सन् 1967 तक राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने देश की अमूल्य सेवा की।
8 डॉ. राधाकृष्णन एक महान दार्शनिक, शिक्षाविद और लेखक थे। वे जीवनभर अपने आपको शिक्षक मानते रहे। उन्होंने अपना जन्मदिवस शिक्षकों के लिए समर्पित किया। इसलिए 5 सितंबर सारे भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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आपको जीवन में आगे बढ़ने,और जीवन में आई कठिनाइयों का सामना करने मैं हिम्मत और साहस की जरुरत है अगर आप में ये साहस है तो आप खुद को और इस देश को बदल सकते है,खोजोंगे अगर तो रास्ते मिलेंगे, हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं,जिस दिन लोग ऐसी सोच रखना शुरू कर देंगे, उस दिन हमारा भारत सही मायने मे महान कहलाएगा,धन्यवाद, |जय हिन्द| |जय भारत |अगर आप को मेरे विचार अच्छे लगे तो प्लीज़,आप अपने विचार दें||