दुनिया आज जिस एक चीज़ से परेशां है उस का नाम लॉक डाउन है,
क्या कभी किसी ने सोचा था की दुनिया की रफ़्तार इतनी तेज़ी से भाग रही है उस से भी तेज़ इस की रफ़्तार थमने वाली है, हर जगह हम किसी ने किसी पर निर्भर थे हर काम कितना जाली हो जाता था आप को थोड़ी भी दूर जाना था तो आप झट से टैक्सी बुक करते थे ,आप को मूवी देखनी हो या पार्क में जाना था , हर चीज़ बड़ी आसानी से मिल रही थी, इस रफ़्तार भरी दुनिया को पैसा चला रहा था , देश चाहे की भी हो हर कोई तरक़ी के पीछे भाग रहा था , सब से बड़े बन जाने की होड़ में लगा था ,सब से बड़ी बिल्डिंग हो या सब से बड़ा शॉपिंग काम्प्लेक्स देश इस से भी आगे निकल कर दुनिया को ख़त्म करने के साजो समान के अवैध हथियारों का जखीरे को जमा करने की होड़ में लगा था, कितने ही देश है जो सिर्फ अपना डर दिखा कर मानवता पर अपना ख़ौफ़ डालने के लोगो को मारने तक का काम किया, ये तो बात थी जो देश और सिर्फ देश की सरकारों पर निर्भर थी मगर इस के साथ साथ दुनिया में एक बड़ा तपका जो एक सिर्फ स्टेटस सिम्बल्स की रेस में खुद के जीवन के अनमोल पल गवा देते है,
अगर इस भागती दुनिया में किसी वर्ग को फर्क पड़ा है तो वो शहरों की आबादी है । में सोचता हूँ आज दुनिया के बड़े - बड़े शहरो की आबादी अपने घरो में बंद है,खाने पिने से ले कर मानसिक परेशानी से रूबरू होती शहरों की जिंदगी महीनो से अपने घरो में दुबक कर बैठ गयी इस से बुरा क्या होगा की जो काम की तलाश में आये 5 या 6 लोग महीनो से अपने एक कमरे में जीवन जीने को मजबूर हो गए , कुछ ऐसे भी थे जो अकेले ही अपने घरो में बंद होने को मजबूर हो गए , ज़िन्दगी से टकराते विचारो का सागर मानसिक रूप से दिन प्रतिदिन कमज़ोर कर देता है , आप को बहुत से विज्ञापन मिलते है खुद को कैसे फिट रखे और न जाने क्या क्या !मगर सवाल तो ये भी है की वो कितने फिट है , फिट होना सिर्फ आप का रूप या बॉडी ही नहीं क्यों की इस लॉक डाउन में एक बड़े बॉडी बिल्डर ने आत्महत्या की मगर कब तक जो एक इंसान अपने जिम्मेदारियों का बोझ अपने सर पर लाद कर निकला हो वो अपने उस कमरे की खिड़की पर खड़े होने के अलावा क्या कर सकता है , खुले आसमान को देखना और वक़्त बीत जाने का इंतज़ार करना,एक बात तो साफ़ है की इस लॉक डाउन ने आत्मनिर्भर बना दिया जो कल तक अपना गिलास धोने के लिए काम वाली बायीं या नौकर का इंतज़ार करते थे आज घर का सारा काम करना सिख गए |
उनके लिए इस लॉक डाउन में जरूर मुश्किल हो रही है, मगर शहरों के मुकाबले गाँव की सैर जीवन थोड़ा सरल और सादा है, खुद को खुशनसीब समझा होगा उन्होंने जो इस दौरान अपने गॉव में थे, आज़ादी का सही मतलब अगर अब इस लॉक डाउन के बाद किसी शहर वाले को पुछा जाये तो खुले आसमान की और देख कर अपनी बाहें खोल कर साफ़ और आसान तरीके में बता सकता है की आज़ादी क्या है, महात्मा गाँधी जी ने जो सपना देखा था एक स्वच्छ भारत का वो सपना पूरा हुआ , नदियाँ से ले कर दिल्ली की हवा तक सब साफ़ अगर पंजाब से और बिहार से हिमालये देखा गया तो कारण लोगो का बिनाकारण बहार न निकलना ही था, तो क्या हम इस लॉक डाउन के बाद एक कार को शेयर नहीं कर सकते काम के लिए साइकिल पर नज़दीक का सफर नहीं कर सकते , अपनी गाडी की जगह ट्रैन और बस का इस्तेमाल नहीं कर सकते या इस के बाद भी जीवन फिर लग जायेगा सब कचड़ा करने,
लड़का हो या लड़की उसे घर-गृहस्थी का काम तो आना ही चाहिए, हालांकि कई लोग इन सब बातों को नहीं मानते। ऐसे लोग फिर होटल,टिफिन या फिर ऑनलाइन खाना डिलिवर करने वाली कंपनियों पर निर्भर रहते हैं मगर लॉक डाउन में सब होटल ,रेस्टोरेंट्स , सब बंद आप को जीना है तो खुद के लिए बनाना पड़ेगा फिर नमक में आटे डालो या आटे में नमक, चलो अच्छा है इस लॉक डाउन में खाना बनाना बहुत से लोग सिख गए शयद मै भी उन में से एक हूँ, अच्छा नहीं बना पता मगर हाँ मैं मेरा बनया में खुद खा लेता हूँ ,दोस्तों का मिलना भी कम हो गया डर से ही सही मगर ये मिलना मिलाना फालतू का गिफ्ट देना बंद हो गया जरुरी चीज़ो पर ही जीवन निर्भर है ये शयद उस भीड़ के वर्ग ने जाना होगा जो घरो से बहार जा कर पार्टी करना डिस्को होटल नाईट लाइफ स्टाइल, आज लोग सिर्फ फ़ोन पर बात कर के हाल चल पूछ कर ये खुशी मना रहे है की हम ठीक है हमारे अपने ठीक है,
बंद दीवारों के झरोखे से निकल कर देखे की लॉकडाउन के बाद जीवन कैसे है
जीवन को नया तरीका मिला है इस लॉक-डाउन में, आज अगर दुनिया ने जाना है की कपड़ो से ज्यादा और लक्ज़री पर फिजूलखर्जी बहुत ज्यादा करते थे तो आप खुद को देखिये की आप ने इस दौरान क्या ऐसा लिया सिर्फ को खुद के लिए और परिवार के खाद्य सामग्री को छोड़ कर| ऐसा नहीं है कि लॉकडाउन में लोगों के खर्चे नहीं हुआ मगर अनावश्यक खरीदारी पर लगाम जरूर लगा दी है। काफी लोगो की जरुरत सिर्फ दो वक़्त की रोटी होती है उनका सारा जीवन इस दो वक़्त में ही गुजर जाता है ,भीड़ से दूर कहीं |
लड़का हो या लड़की उसे घर-गृहस्थी का काम तो आना ही चाहिए, हालांकि कई लोग इन सब बातों को नहीं मानते। ऐसे लोग फिर होटल,टिफिन या फिर ऑनलाइन खाना डिलिवर करने वाली कंपनियों पर निर्भर रहते हैं मगर लॉक डाउन में सब होटल ,रेस्टोरेंट्स , सब बंद आप को जीना है तो खुद के लिए बनाना पड़ेगा फिर नमक में आटे डालो या आटे में नमक, चलो अच्छा है इस लॉक डाउन में खाना बनाना बहुत से लोग सिख गए शयद मै भी उन में से एक हूँ, अच्छा नहीं बना पता मगर हाँ मैं मेरा बनया में खुद खा लेता हूँ ,दोस्तों का मिलना भी कम हो गया डर से ही सही मगर ये मिलना मिलाना फालतू का गिफ्ट देना बंद हो गया जरुरी चीज़ो पर ही जीवन निर्भर है ये शयद उस भीड़ के वर्ग ने जाना होगा जो घरो से बहार जा कर पार्टी करना डिस्को होटल नाईट लाइफ स्टाइल, आज लोग सिर्फ फ़ोन पर बात कर के हाल चल पूछ कर ये खुशी मना रहे है की हम ठीक है हमारे अपने ठीक है,
आज लॉक डाउन हुआ तो ये जाना है की जीवन क्या है, अगर आप छोटे से घर में रहते है तो , अगर ये बात कहूँ तो क्या गलत है आज बहुत से देशो में घर में काम करने वाली महिला को काफी मुश्किल भरा दौर देखना पड़ा, सारा दिन एक मशीन रोबोट के जैसे घर की जरुरत को पूरा करना ही उदेश रह गया, खुद का जीवन जैसे कहीं खो दिया हो,
आज भीड़ से दूर कहीं खुद की तलाश जारी है मैं क्या हूँ मैं क्यों हूँ ?
आज भीड़ से दूर कहीं खुद की तलाश जारी है मैं क्या हूँ मैं क्यों हूँ ?
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आपको जीवन में आगे बढ़ने,और जीवन में आई कठिनाइयों का सामना करने मैं हिम्मत और साहस की जरुरत है अगर आप में ये साहस है तो आप खुद को और इस देश को बदल सकते है,खोजोंगे अगर तो रास्ते मिलेंगे, हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं,जिस दिन लोग ऐसी सोच रखना शुरू कर देंगे, उस दिन हमारा भारत सही मायने मे महान कहलाएगा,धन्यवाद, |जय हिन्द| |जय भारत |अगर आप को मेरे विचार अच्छे लगे तो प्लीज़,आप अपने विचार दें||