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Kuch To log Kahenge Logo Ka Kaam Hai Kehna Motivational Story

कुछ तो लोग कहेंगे kuch to log kahenge 

कुछ तो लोग कहेंगे,लोगो का काम है कहना,कब तक उनके बारे में सोचोगे, अगर उनके बारे में की सोचते रहे तो आप कभी मंजिल तक नहीं पहुँच सकते | आप इस बात से भी डरते है की वो आप के बारे में क्या बात करते है वो आप की पीठ के पीछे आपकी क्या बात करते कितने ही काम है जो आप ये सोच कर ही नहीं करते आप  घबरा जाते है तो दोस्तों आप को घबराना नहीं ,क्योंकि बात तो उन्हीं की होती है जिनमें वाकई कोई बात होती है।क्या आप ने सोचा है की जब आप लोगो के बारे में सोच कर अपने काम नहीं कर पाते जो आप सोचते है जो करना चाहते है अगर आप नहीं कर पाते लोगो के ड़र से की वो क्या सोचते है या सोचेगे, तो आप खुद के लिए तनाव पैदा करते है, आप उस तनाव में जीने लगते है, जो आप को अंदर ही अंदर खाने लग जाता है|

मोटिवेशन 


तनाव से दूर रहकर जिंदगी को भरपूर जिए, 

आज स्कूल से ले कर बुढ़ापे तक  करियर, परिवार की जिम्मेदारियां, काम का बोझ, वक्त की कमी,अकेलापन और महत्वाकांक्षाएं आज इंसान जिंदगी जीना भूल गया है इतने सारे दबाव दिमाग पर होंगे तो तनाव अपने चरम पर होगा ही। तो क्यों न ऐसे उपाय अपनाएं, जिनसे इस तनाव को खुद से दूर रखा जा सके। मगर क्या आज कोई ऐसे है जिस पर तनाव नहीं ? दिन-ब-दिन तनाव बढ़ता ही जा रहा है। डॉंक्टरों का मानना है कि ऐसे 90 प्रतिशत मरीज तो अपनी स्वास्थ्य समस्याओं के लिए खुद ही जिम्मेदार होते हैं।जब आप के मस्तिष्क को पूरा आराम नहीं मिल पाता और उस पर हमेशा एक दबाव बना रहता है तो समझिए तनाव ने आपको अपनी चपेट में ले लिया है।

क्या होता है तनाव कितना नुकसानदेह है तनाव ?

व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक कार्यप्रणाली को गड़बड़ा देती है। ‘तनाव के कारण शरीर में कई हार्मोनों का स्तर बढ़ जाता है, जिनमें एड्रीनलीन और कार्टिसोल प्रमुख हैं। इनकी वजह से दिल का तेजी से धड़कना, आप की पाचन क्रिया  थोड़ी मंद पड़ जाती है  रक्त का प्रवाह प्रभावित होना, नर्वस सिस्टम की कार्यप्रणाली गड़बड़ा जाना और प्रतिरोधक तंत्र का कमजोर होना जैसी समस्याएं पैदा हो जाती हैं।’
अगर तनाव की स्थिति लगातार बनी रहती है तो इसका असर धीरे-धीरे बाहरी रूप से भी दिखाई देने लगता है। इस कारण आपको डिप्रेशन, डायबिटीज, बालों का झड़ना, हृदय रोग, मोटापा, अल्सर, सेक्सुअल डिसफंक्शन की समस्याएं हो सकती हैं।

एड्रीनलीन और कार्टिसोल क्या है ?

Adrenaline जब आपके सामने कोई तनावपूर्ण स्थिति हो और आपका दिल जोर-जोर से धड़कने लगता है, आपके हाथ में पसीना आना शुरू हो जाता है और आप बचने के रास्ते की तलाश शुरू कर देते हैं, अगर आपके साथ कभी ऐसा हुआ हैं तो आपने “फाइट-या-फ्लाइट” नामक हार्मोनल प्रतिक्रिया का वास्तविक अनुभव किया है। “फाइट-या-फ्लाइट” प्रतिक्रिया एड्रेनालाईन नाम के एक हार्मोन से उत्पन्न होती है। यह हार्मोन शरीर की “फाइट-या-फ्लाइट” यानी लड़ने के लिए या खतरे बचने के लिए तैयार होने की प्रतिक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन ऐसा अधिक बार होने पर हमारे शरीर के लिए यह हानिकारक हो सकता है।

Cortisol तनाव आपकी जिंदगी को किस तरह प्रभावित करता है आपने सोचा भी नहीं होगा, तनाव के कारण आपके शरीर का यह जरूरी हार्मोन Cortisol  डिस्टर्ब हो जाता है,कार्टिसोल मानव शरीर में बहुत ही अहम हार्मोन है। इसे स्‍ट्रेस हार्मोन भी कहते हैं।  शरीर की कई क्रियाओं में अहम भूमिका होती है। कार्टिसोल की ज्‍यादा या  कम मात्रा दोनों ही हमरे शरीर के लिए नुकसानदायक होती है। लंबे समय तक शरीर में Cortisol की ज्‍यादा मात्रा बने रहने पर यह खतरनाक भी हो सकता है।  खून के जरिए शरीर के अन्य हिस्सों में पहुंच कर उन्हें अलग-अलग कार्यों के लिए एक संदेशवाहक के रूप में निर्देश देते हैं। हार्मोन्स की छोटी सी मात्रा के घटने-बढ़ने भर से ही शरीर की कोशिकाओं का मेटाबॉलिज्म प्रभावित होने लगता है। मानव शरीर में कुल 230 हार्मोन्स होते हैं। कई हार्मोन, दूसरे हार्मोन्स के निर्माण और स्राव को भी काबू रखते हैं। उम्र, तनाव की अधिकता, अस्वस्थ जीवनशैली, स्टेरॉएड दवाओं का अधिक सेवन, ज्यादा वजन या कुछखास दवाओं के कारण हार्मोन्स के स्तर में गड़बड़ी हो सकती है।भूख और वजन पर असर डालने वाले इस हार्मोन के बारे में फैक्टत यह है कि यह सुबह के छह बजे के आसपास बढ़ जाता है, जिससे भूख लगती है और शाम के छह बजते हुए यह अपने निम्नी स्त र पर आ जाता है। यह सही और संतुलित प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया जब बाधित होती है तो तनाव और वजन दोनों बढ़ने लगता है।

कुछ तो लोग कहेंगे और लोगो का काम है कहना 

बॉलीवुड में एक गीत है कुछ तो लोग कहेंगे ,लोगों का काम है कहना,छोडो, बेकार की बातों में कहीं बीत न जाए रैना || इसका अर्थ साफ़ है की आप अगर कुछ करना चाहते है तो करिये बिना ये सोचे की आप उस में सफल होंगे या असफल क्यों की लोगो का काम कहना है या तो अच्छा या बुरा मगर आप कोशिश किये बिना हार मान गए तो इस का मलाल सारी उम्र रहेगा | अगर आप चुप रहने की आदत को सही मानते है तो आप एक बीमारी से घिर गए है,और फिर उसके बाद अगर आप बोलना भी चाहोगे तो बोल नहीं पाओगे ,लोगो के पास तो बातें है कहने के लिए तुम कुछ भी कर लो कितना भी अच्छा वो तो कहेगे ही पर तुमको काम भी करना है क्या करना है? कब करना है? ये तय भी तुमको करना है।


अरुणिमा आसाधारण कामयाबि हासिल करने वाली एक Motivational Story 


एक मिला जिसने मौत से भी संघर्ष किया जिंदगी और मौत कई विपरीत परिस्थितियों का सामना किया मगर जीना नहीं छोड़ा  कभी हार नहीं मानी। कमज़ोरी को भी अपनी ताकत बनाया। मजबूत इच्छा-शक्ति, मेहनत, संघर्ष और हार न मानने वाले ज़ज़्बे से असाधारण कामयाबी हासिल की। दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी पर पहुँच कर अरुणिमा ने साबित किया कि हौसले बुलंद हो तो ऊंचाई मायने नहीं रखती, इंसान अपने दृढ़ संकल्प, तेज़ बुद्धि और मेहनत से बड़ी से बड़ी कामयाबी हासिल कर सकता है। अरुणिमा सिन्हा अपने संघर्ष और कामयाबी की वजह से दुनिया-भर में कई लोगों के लिए प्रेरणा बन गयी हैं। किसी महिला या युवती की ज़िंदगी की तरह साधारण नहीं अरुणिमा की ज़िंदगी की कुछ घटनाएं।

अरुणिमा सिन्हा को "पद्म श्री"पुरस्कार

भारत रत्न
भारत सरकार ने 66 वें गणतंत्र दिवस पर जिन लोगों के नामों की घोषणा पद्म पुरस्कारों के लिये की उनमें एक नाम अरुणिमा सिन्हा का भी है। उत्तरप्रदेश की अरुणिमा सिन्हा को "पद्मश्री" के लिये चुना गया। "पद्मश्री" भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाला चौथा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है। भारत रत्न, पद्मविभूषण और पद्मभूषण के बाद पद्म श्री ही सबसे बड़ा सम्मान है। किसी भी क्षेत्र में असाधारण और विशिष्ट सेवा के लिए पद्म सम्मान दिए जाते हैं। खेल-कूद के क्षेत्र में असाधारण और विशिष्ट सेवा के लिए अरुणिमा सिन्हा को "पद्म श्री" देने का ऐलान किया गया। अरुणिमा सिन्हा दुनिया के सबसे ऊँचे पर्वत शिखर एवरेस्ट पर विजय प्राप्त करने वाली दुनिया की पहली विकलांग महिला हैं। 21  मई, 2013 की सुबह 10 .55 मिनट पर अरुणिमा ने माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराकर 26 साल की उम्र में विश्व की पहली विकलांग पर्वतारोही बनने का गौरव हासिल किया। खेलकूद के क्षेत्र में जिस तरह अरुणिमा की कामयाबी असाधारण है उसी तरह उनकी ज़िंदगी भी असाधारण ही है।

बहादुरी की अद्भुत मिसाल पेश करने वाली अरुणिमा का परिवार मूलतः बिहार से है। उनके पिता भारतीय सेना में थे। स्वाभाविक तौर पर उनके तबादले होते रहते थे। इन्हीं तबादलों के सिलसिले में उन्हें उत्तरप्रदेश के सुल्तानपुर आना पड़ा था। लेकिन, सुल्तानपुर में अरुणिमा के परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा। अरुणिमा के पिता का निधन हो गया। हँसते-खेलते परिवार में मातम छा गया। पिता की मृत्यु के समय अरुणिमा की उम्र महज़ साल थी। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई और देखभाल की सारी ज़िम्मदेारी माँ पर आ पड़ी। माँ ने मुश्किलों से भरे इस दौर में हिम्मत नहीं हारी और मजबूत फैसले लिए। माँ अपने तीनों बच्चों- अरुणिमा, उसकी बड़ी बहन लक्ष्मी और छोटे भाई को लेकर सुल्तानपुर से अम्बेडकरनगर आ गयीं। अम्बेडकरनगर में माँ को स्वास्थ विभाग में नौकरी मिल गयी, जिसकी वजह से बच्चों का पालन-पोषण ठीक तरह से होने लगा। बहन और भाई के साथ अरुणिमा भी स्कूल जाने लगी। स्कूल में अरुणिमा का मन पढ़ाई में कम और खेल-कूद में ज्यादा लगने लगा था।

दिनब दिन खेल-कूद में उसकी दिलचस्पी बढ़ती गयी। वो चैंपियन बनने का सपना देखने लगी। जान-पहचान के लोगों ने अरुणिमा के खेल-कूद पर आपत्ति जताई, लेकिन माँ और बड़ी बहन ने अरुणिमा को अपने मन की इच्छा के मुताबिक काम करने दिया। अरुणिमा को फुटबॉल, वॉलीबॉल और हॉकी खेलने में ज्यादा दिलचस्पी थी। जब कभी मौका मिलता वो मैदान चली जाती और खूब खेलती। अरुणिमा का मैदान में खेलना आस-पड़ोस के कुछ लड़कों को खूब अखरता। वो अरुणिमा पर तरह-तरह की टिपाणियां करते। अरुणिमा को छेड़ने की कोशिश करते। लेकिन, अरुणिमा शुरू से ही तेज़ थी और माँ के लालन-पालन की वजह से विद्रोही स्वभाव भी उसमें था। वो लड़कों को अपनी मन-मानी करने नहीं देती । छेड़छाड़ की कोशिश पर अरुणिमा ऐसे तेवर दिखाती, जिससे डरकर लड़के दूर भाग जाते। एक बार तो अरुणिमा ने उसकी बहन से बदतमीज़ी करने वाले एक शख्स की भरे-बाजार में पिटाई कर दी थी।

हुआ यूं था कि अरुणिमा अपनी बड़ी बहन के साथ साइकिल पर कहीं जा रही। बीच में एक जगह रूककर बड़ी बहन किसी से बात करने लगीं। अरुणिमा थोड़ा आगे निकल गयी और वहीं रुककर अपनी बहन का इंतजार करने लगी। इसी बीच साइकिल पर सवार कुछ लड़के वहां से गुजरे। लड़कों ने अरुणिमा से उनके लिए रास्ता छोड़ने को कहा। अरुणिमा ने उन लड़कों से आगे खाली जगह से निकल जाने को कहा और अपनी जगह पर टिकी रही। अरुणिमा के इस रवैये से नाराज़ लड़कों से उसकी बहस शुरू हुई और इसी बीच बड़ी बहन वहां आ गयी। तैश में आये एक लड़के ने हाथ उठा दिया और अरुणिमा की बहन के गाल पर चांटा मारा ।



इस बात से अरुणिमा को बहुत गुस्सा आया और उसने उस लड़के को पकड़ कर पीटने की सोची। लेकिन, भीड़ का फायदा उठा कर वो लड़का और उसके साथी भाग निकले। लेकिन, अरुणिमा ने ठान ली कि वो उस लड़के को नहीं छोड़ेगी। दोनों बहनें उस लड़के की तलाश में निकल पड़े। आखिर वो लड़का उन्हें पान की एक दूकान पर दिखाई दिया। अरुणिमा ने उस लड़के को पकड़कर उसकी जमकर धुनाई की। इस धुनाई पर खूब बवाल मचा। कई लोगों ने लड़के को छुड़वाने की बहुत कोशिश की लेकिन, अरुणिमा नहीं मानी। लड़के ने माँ-बाप ने जब आकर अपने लड़के की करतूत पर माफी माँगी , तब जाकर अरुणिमा ने लड़के को छोड़ा। इस घटना का नतीजा ये हुआ कि मोहल्ले में लड़कों से लड़कियों से साथ बदसलूकी बंद कर दी। अरुणिमा की बहादुरी और उसके तेवर की चर्चा अब मोहल्ले भर में थी। दिन बीतते गए। अरुणिमा ने इस दौरान कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और अपनी प्रतिभा से कईयों को प्रभावित किया। उसने खूब वॉलीबॉल-फुटबॉल खेला, कई पुरस्कार भी जीते। राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भी खेलना का मौका मिला। इसी बीच अरुणिमा की बड़ी बहन की शादी हो गई। शादी के बाद भी बड़ी बहन ने अरुणिमा का काफी ख्याल रखा। 

बड़ी बहन की मदद और प्रोत्साहन की वजह से ही अरुणिमा ने खेल-कूद के साथ साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी। उसके कानून की पढ़ाई की और एलएलबी की परीक्षा भी पास कर ली। घर-परिवार चलाने में माँ की मदद करने के मकसद ने अरुणिमा ने अब नौकरी करने की सोची। नौकरी के लिए उसने कई जगह अर्ज़ियाँ दाखिल कीं।इसी दौरान उसे केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल यानी सीआईएसएफ के दफ्तर से बुलावा आया। अफसरों से मिलने वो नॉएडा के लिए रवाना हो गयी। 

हार नहीं मानी बदमासो से चलती ट्रैन में 

अरुणिमा पद्मावत एक्सप्रेस पर सवार हुई और एक जनरल डिब्बे में खिड़की के किनारे एक सीट पर बैठ गयी। कुछ ही दर बाद कुछ बदमाश लड़के अरुणिमा के पास आये और इनमें से एक ने अरुणिमा के गले में मौजूद चेन पर झपट्टा मारा। अरुणिमा को गुस्सा आ आया और वो लड़के पर झपट पड़ी। दूसरे बदमाश साथी उस लड़के की मदद के लिए आगे आये और अरुणिमा को दबोच लिया। लेकिन, अरुणिमा ने हार नहीं मानी और लड़कों से झूझती रही। लेकिन , उन बदमाश लड़कों ने अरुणिमा को हावी होने नहीं दिया। इतने में ही कुछ बदमाशों ने अरुणिमा को इतनी ज़ोर से लात मारी की कि वो चलती ट्रेन से बाहर गिर गयी। अरुणिमा का एक पाँव ट्रेन की चपेट में आ गया। और वो वहीं बेहोश हो गयी। रात-भर अरुणिमा ट्रेन की पटरियों के पास ही पड़ी रही। 
अरुणिमा की हिम्म्त 

सुबह जब कुछ गाँव वालों ने उसे इस हालत में देखा तो वो उसे अस्पताल ले गए। जान बचाने के लिए डाक्टरों को अस्पताल में अरुणिमा की बायीं टांग काटनी पड़ी। जैसे ही इस घटना की जानकारी मीडियावालों को हुई, ट्रेन की ये घटना अखबारों और न्यूज़ चैनलों की सुर्ख़ियों में आ गयी। मीडिया और महिला संगठनों के दबाव में सरकार को बेहतर इलाज के लिए अरुणिमा को लखनऊ के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराना पड़ा। सरकार की ओर से कई घोषणाएं भी की गयीं। तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी ने अरुणिमा को नौकरी देने की घोषणा की। खेल मंत्री अजय माकन की ओर से भी मदद की घोषणा हुई। सीआईएसएफ ने भी नौकरी देने का ऐलान कर दिया। लेकिन, इन घोषणाओं के बाद ज्यादा कुछ नहीं हुआ। उलटे कुछ लोगों ने अरुणिमा के बारे में तरह-तरह की झूठी बातों का प्रचार किया। उसे बदनाम करने की कोशिश की गयी। कुछ शरारती तत्वों ने ये कहकर विवाद शुरू किया कि अरुणिमा सरकारी नौकरी की हकदार नहीं है क्योंकि उसने कभी राष्ट्रीय स्तर पर खेला ही नहीं है।

कुछ ने ये अफवाह उड़ाई कि अरुणिमा ने इंटर की परीक्षा भी पास नहीं की है। कुछ लोगों ने तो हदों की सीमा पार कर ये कहना शुरू किया कि अरुणिमा किसी के साथ ट्रेन में भाग रही थी। कुछ बदमाशों ने आरोप लगाया की अरुणिमा शादीशुदा है । एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि अरुणिमा ने ट्रेन के कूदकर आत्महत्या करने की कोशिश की थी। दूसरे अधिकारी से शक जताया कि पटरियां पार करते समय दुर्घटनावश वो ट्रेन की चपेट में आ गयी। इस तरह की बातें मीडिया में भी आने लगीं । अरुणिमा इन बातों से बहुत हैरान और परेशान हुई। वो अपने अंदाज़ में आरोप लगाने वालों को जवाब देना चाहती थी। लेकिन बेबस थी। एक पाँव काट दिया गया था और शारीरिक रूप से कमज़ोर होकर वो अस्पताल में बिस्तर पर पड़ी हुई थी। वो बहुत कुछ चाह कर भी कुछ न कर पाने की हालत में थी। माँ, बहन और जीजाजी ने अरुणिमा की हिम्म्त बढ़ाई और उसे अपना ज़ज़्बा बरकरार रखने की सलाह दी।

अस्पताल में इलाज के दौरान समय काटने के लिए अरुणिमा ने अखबारें पढ़ना शुरू किया । एक दिन जब वह अखबार पढ़ रही थी।उसकी नज़र एक खबर पर गयी। खबर थी कि नोएडा के रहने वाले 17 वर्षीय अर्जुन वाजपेयी ने देश के सबसे युवा पर्वतारोही बनने का कीर्तिमान हासिल किया है। इस खबर ने अरुणिमा के मन में एक नए विचार को जन्म दिया। खबर ने उसके मन में एक नया जोश भी भरा था। अरुणिमा के मन में विचार आया कि जब 17 साल का युवक माउंट एवरेस्ट पर विजय पा सकता है तो वह क्यों नहीं? उसे एक पल के लिए लगा कि उसकी विकलांगता अड़चन बन सकती हैं। लेकिन उसने ठान लिया कि वो किसी भी सूरतोहाल माउंट एवरेस्ट पर चढ़कर की रहेगी। उसने अखबारों में क्रिकेटर युवराज सिंह के कैंसर से संघर्ष के बाद फिर मैदान में फिर से उतरने की खबर भी पढ़ी। उसका इरादा अब बुलंद हो गया। इसी बीच उसे कृतिम पाँव भी मिल गया। अमेरिका में रहने वाले डॉ राकेश श्रीवास्तव और उनके भाई शैलेश श्रीवास्तव, जो इनोवेटिव नाम से एक संस्था चलाते हैं, उन्होंने अरुणिमा के लिए कृत्रिम पैर बनवाया। और, इस कृतिम पैर को पहनकर अरुणिमा फिर से चलने लगी। लेकिन, कृतिम टांग लगने के बावजूद कुछ दिनों तक अरुणिमा की मुश्किलें जारी रहीं। विकलांगता का प्रमाण पत्र होने बावजूद लोग अरुणिमा पर शक करते। एक बार तो रेलवे सुरक्षा बल के एक जवान ने अरुणिमा की कृतिम टांग खुलवाकर देखा कि वो विकलांग है या नहीं। ऐसे ही कई जगह अरुणिमा को अपमान सहने पड़े। वैसे तो ट्रेन वाली घटना के बाद रेल मंत्री ममता बनर्जी ने नौकरी देने की घोषणा की थी, लेकिन रेल अधिकारियों ने इस घोषणा पर कोई कार्यवाही नहीं की और हर बार अरुणिमा को अपने दफ्तरों से निराश ही लौटाया । अरुणिमा कई कोशिशों के बावजूद रेल मंत्री से भी नहीं मिल पाई , लेकिन अरुणिमा ने हौसले बुलंद रखे और जो अस्पताल मैं फैसला लिया था उसे पूरा करने के लिए काम चालू कर दिया। 

अरुणिमा ने किसी तरह बछेंद्री पाल से संपर्क किया। बछेंद्री पाल माउंट एवरेस्ट पर फतह पाने वाली पहली भारतीय महिला थीं। बछेंद्री पाल से मिलने अरुणिमा जमशेदपुर गयीं। बछेंद्री पाल ने अरुणिमा को निराश नहीं किया। अरुणिमा को हर मुमकिन मदद दी और हमेशा प्रोत्साहित किया। अरुणिमा ने उत्तराखंड स्थित नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनरिंग (एनआइएम) से पर्वतारोहण का 28  दिन का प्रशिक्षण लिया।उसके बाद इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन यानी आइएमएफ ने उसे हिमालय पर चढ़ने की इजाजत दे दी। प्रशिक्षण पूरा करने के बाद 31  मार्च, 2012  को अरुणिमा का मिशन एवरेस्ट शुरु हुआ। अरुणिमा के एवरेस्ट अभियान को टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन ने प्रायोजित किया । फाउंडेशन ने अभियान के आयोजन और मार्गदर्शन के लिए 2012  में एशियन ट्रेकिंग कंपनी से संपर्क किया था। एशियन ट्रेकिंग कंपनी ने 2012  के वसंत में अरुणिमा को नेपाल की आइलैंड चोटी पर प्रशिक्षण दिया। 52 दिनों के पर्वतारोहण के बाद 21 मई, 2013  की सुबह 10. 55  मिनट पर अरुणिमा ने माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया और २६ साल की उम्र में विश्व की पहली विकलांग पर्वतारोही बनीं। कृत्रिम पैर के सहारे माउंट एवरेस्ट पर पहुँचने वाली अरुणिमा सिन्हा यहीं नहीं रुकना चाहती हैं। वो और भी बड़ी कामयाबियां हासिल करने का इरादा रखती हैं। उनकी इच्छा ये भी है कि वे शारीरिक रूप से विकलांग लोगों को कुछ इस तरह की मदद करें कि वे भी आसाधारण कामयाबियां हासिल करें और समाज में सम्मान से जियें।  


अकेले चलना सीखो कुछ तो लोग कहेंगे(MOTIVATIONAL)

ऐसा की आप सभी जानते है की जीवन में कुछ भी पाना आसान नहीं है तो पहले आप को खुद को पहचानना होगा, उद्धरण के लिए अगर आप को हिरा चाहिए तो हिरे की पहचान आणि चाइये . खाना खाना है तो बनाना ही पड़ेगा , बिना धुप के आप तो अपनी परछाई नहीं देख सकते, जो आप सोच रहे है की आप करना चाहते है कर दीजिये अगर आप ये सोचने में अपना वक़्त गवा देंगे तो हो सकता है आप उस को बाद में न कर पाए क्यों की शयद बिता हुआ वक़्त वापिस न आये, अगर आज आप को दुनिया बोलती है की काम नहीं होगा आप नहीं कर सकते आप उनकी बाते सुन कर खुद में दुःख मन रहे है तो आप गलत है , 
आप को शुरुआत करनी होगी इस बोलती हुई  दुनिया को कर के दिखने का वक़्त आ गया है, क्यों की कुछ तो लोग बोलेंगे उनका काम है कहना || 

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