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Hridaya Ki Ek Aah Se Nikali Pukaar Aur Kraanti Se Praarthana

हृदय की  एक आह से निकली पुकार और क्रान्ति से प्रार्थना का विश्वास

 पर्दा ना कर पुजारी ...  दिखने दे राधा प्यारी ,

मेरे पास वक्त कम हैं ... और बाते हैं ढेर सारी🙏❤️

एक हृदय की आह भी काफी है; तब एक पुकार से भी क्रांति हो जाती है। परमात्मा बहरा थोड़े ही है, और परमात्मा कोई तुम्हारी खुशामद का आतुर थोड़े ही है कि तुम बहुत बार कहो तब सुनेगा। बिना कहे भी सुन लेता है, तुम्हारे हृदय में होना चाहिए। और तुम्हारी खोपड़ी से तुम कितना ही दोहराओ, कभी नहीं सुना जाता; क्योंकि तुम्हारी चिंतना से परमात्मा का कोई संबंध नहीं है, तुम्हारी प्रार्थना से संबंध है।


तुम्हारा प्रेम ही तुम्हारी प्रार्थना है 

मैंने सुना है, एक गांव में वर्षों से वर्षा न हुई थी। तो सारा गांव मंदिर में इकट्ठा हुआ था प्रार्थना करने को। एक छोटा बच्चा भी मंदिर जा रहा था प्रार्थना के लिए। सारे लोग रास्ते में उसका मजाक करने लगे। मंदिर का पुजारी भी कहने लगा, नासमझ! यह छाता किसलिए ले जा रहा है? वर्षों से वर्षा नहीं हुई, इसीलिए तो हम प्रार्थना करने जा रहे हैं। वह बच्चा एक छाता ले आया था। भीड़ आई थी, कोई दस हजार लोग इकट्ठे हुए थे, कोई भी छाता न लाया था।

उस बच्चे ने कहा, मैं इसलिए छाता ले आया कि जब हम प्रार्थना करेंगे तो वर्षा जरूर होगी, लौटते में छाते की जरूरत पड़ेगी।

लोग हंसने लगे, उन्होंने कहा, पागल हुआ है?

अब सवाल यह है कि इन लोगों की प्रार्थना का कोई परिणाम होगा? इस एक छोटे बच्चे की प्रार्थना का परिणाम भर हो सकता था। इसका भरोसा था गहन, यह छाता लेकर आया था; इसे प्रार्थना पर जरा भी शक न था; प्रार्थना इसकी बड़ी गहन श्रद्धा थी। लेकिन इस बच्चे के भी मन को उन बड़े लोगों ने संदेह से भर दिया। उन्होंने कहा, जा, घर छाता रख आ। कहीं ऐसे वर्षा हुई है? 

प्रार्थना करने जा रहे हैं, लेकिन भरोसा नहीं है कि प्रार्थना से वर्षा होने वाली है। तो फिर प्रार्थना क्यों करते हो?

नास्तिक होना बेहतर है, लेकिन ईमानदार होना जरूरी है। आस्तिकता का क्या मूल्य है, अगर बेईमान है? तुमने कितनी बार प्रार्थना की है, लेकिन तुमने भरोसा किया था कि पूरी होगी? फिर प्रार्थना पूरी नहीं होती तो तुम कहते हो, हम तो पहले से ही जानते थे कि कहीं प्रार्थना पूरी होने वाली है। तुमने कितनी बार मंदिर के द्वार खटखटाए, लेकिन कभी तुमने हृदयपूर्वक खटखटाए? कभी तुमने संपूर्ण मन से खटखटाए? या संदेह को लेकर ही गए थे? अगर संदेह को लेकर ही गए थे, तो न जाना उचित था, कम से कम ईमानदारी तो थी। जाकर तुमने किसको धोखा दिया? जाकर तुमने अपना ही नुकसान किया; क्योंकि जाकर तुम्हारी प्रार्थना ही टूटी, और कुछ भी न हुआ। और अगर बार-बार प्रार्थना टूटे, तो धीरे-धीरे आत्मश्रद्धा खो जाती है; आत्मविश्वास खो जाता है; अपने पर भरोसा खो जाता है। फिर प्रार्थना ओंठों से होती है, प्राणों से नहीं होती।

‘मुरारी की थोड़ी सी भी अर्चना जिसने की है’

थोड़ी सी काफी है। शंकर का जोर समझ लेना। मात्रा का सवाल नहीं है कि तुमने कितनी की है, गुण का सवाल है कि तुमने कैसे की है।

जय श्री राधे श्याम 🙏

"कुछ तुम्हारी बाहों मे बीत गई कुछ तुम्हारी यादों में बीत गईं

तुम में ही सिमटी थी जिंदगी मेरी तुम में ही बीत गई" 

  "राधे राधे"🙏❤️

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