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संन्यास क्या है? ‘सुकून’ शांति क्या है?

संन्यास क्या है?

आजकल कुछ छोटे बच्चे, किशोर या दंपति संन्यास ले रहे हैं। एक दंपति ने अपनी 10 माह की बच्ची को छोड़कर संन्यास ले लिया। यानि वो इस संसार की समस्त सुख सुविधाओं को छोड़ देंगे।
संसार को छोड़ना संन्यास नही है और ना ही संन्यास का संसार से मौलिक विरोध है। विवेक का जाग्रत होना संन्यास है , संन्यास:-
1. सार को सार और निस्सार को निस्सार समझना है।
2. आत्मा को आत्मा और शरीर को शरीर समझना ना कि शरीर को आत्मा समझना है।
3. साफ़ दृष्टि है।
4. संपत्ति / वस्तुएँ बेकार नहीं है बल्कि उनका मालिक बनना बेकार है( जैसे मैं मोबाइल फ़ोन का मालिक न होकर प्रयोग कर्ता हूँ) , मेरे बाद कोई और प्रयोग करेगा। ये विचार संन्यास है।
5. धन ग़लत नही है बल्कि उसकी मालकियत ग़लत है, मुझे धन का ट्रस्टी होना चाहिए। ये सोच संन्यास है।
6. व्यापार ग़लत नही है बल्कि शुभ- लाभ के आदर्श को छोड़कर लाभ को आदर्श बनाना ग़लत है। इस तरह की समझ विकसित हो जाना संन्यास है। ये समझ संसार में रहकर भी विकसित हो सकती है और हो सकता है ये संसार छोड़ने से भी विकसित नही हो। अगर संन्यासी शिष्यों की संख्या गिनने लग जाए, उन पर हुक्म चलाने लग जाए तो वह भी संपत्ति इकट्ठा करने के बराबर ही होगा। पलायन संन्यास नही है बल्कि इस कठोर जीवन में रहते हुए समस्याओं का मुक़ाबला करते हुए सत्य का दर्शन कर लेना ही संन्यास है। संन्यास का असली आदर्श मेरी नज़र में कृष्ण , मोहम्मद, नानक और कबीर हैं जो इसी संसार में रहते हुए संन्यसत हुए।सांसारिक उहापोह के बीच रहना, बच्चे पैदा कर उन्हें पालना, व्यापार और खेती करना, राजकार्य संभालना और इन सब कामों को करते हुए भी कमलिनी के पत्र की भॉंति रहना ही असली संन्यास है। इसमें परेशानियों हो सकती हैं और लोग ग़लत भी समझ सकते हैं क्योंकि संसार को छोड़ना संन्यास नही है और ना ही संन्यास का संसार से मौलिक विरोध है। राधे, राधे,
शांति की परिभाषा


‘सुकून’ शांति क्या है?

सामान्यतः शांति की परिभाषा की जाती है वह अवस्था जिसमें disturbance ना हो, युद्ध ना हो।एक दूसरा अर्थ चित्त की स्थिरता है।
मेरे विचार मे पहले यह स्पष्टीकरण ज़रूरी है कि शांति अपने आप में मूल्य (Intrinsic value)नही है। न्याय,समता स्वतंत्रता ,कर्तव्य मूल्य हैं। 🙏
शांति दो प्रकार की होती है:-
१.कृत्रिम शांति:-यह शांति अन्याय को सहने, ग़लत बात को सहने और ग़लत को ग़लत नही कहने से आती है। पारिवारिक शांति के नाम पर बहुत से पति कभी पत्नी और कभी माँ का पक्ष लेते है और तुष्टिकरण को अपनाते हैं,वह साहस करके ग़लत को ग़लत नहीं कहते। इसी तरह बहुत सी पत्नियाँ शांति के नाम पर चुपचाप अत्याचार सहती हैं। गीता में अर्जुन को भी ऐसी ही कृत्रिम शांति की तलाश थी। यह शांति अन्याय और अवसाद लाती है। इससे किसी का भला नही होता। यह हिंसा का सूक्ष्म रूप है स्वयं के साथ भी और दूसरों के साथ भी। यह शांति पलायनवाद(escapism) और बहानेबाज़ी (procrastination) से भी आ जाती है।
जो अन्यायी और शोषक हैं वे व्यवस्था और शांति बनाए रखना चाहते है क्योंकि उन्हे कोई तकलीफ़ नही है। मार्क्स के अनुसार शोषण पर आधारित किसी भी समाज मे सम्पन्न वर्ग(Haves)ही शांति चाहते हैं।
२. वास्तविक शांति:-यह शांति मूल्याधृत जीवन जीने,अपने कर्तव्य का पालन करने,साहस के साथ समस्या का सामना करने, काम को उसी समय निपटाने,न्याय का पक्ष लेने से आती है। सत्य बोलने और अपने भयों (phobias) पर विजय पाने से आती है।
संबंधों में तुष्टिकरण को छोड़कर न्याय का पक्ष लेना ज़रूरी है , इससे घर मे अस्थायी अशांति आ सकती है उससे घबराना नही चाहिए क्योंकि कृत्रिम शांति से अस्थायी अशांति बहुत बेहतर है। ये अहिंसा का सूक्ष्म रूप है।संबंधों में लोकप्रिय बनने की कोशिश नही करनी चाहिए ,धृतराष्ट्र ने लोकप्रिय बनने का असफल प्रयास किया उस कृत्रिम अशांति और ग़लत को ग़लत ना कहने की आदत ने अन्ततःमहाभारत हुई। कल्पना कीजिए यदि अर्जुन का पक्ष जो शांति का पक्ष था सफल रहता तो अर्जुन युद्ध से पलायन कर जाता और फिर कौरव कितनी जटिलताएँ पैदा करते इसका अनुमान कृष्ण जी को पहले ही था ,उन्होंने हिंसा का पक्ष लिया ऐसा कहना ग़लत है , वो न्याय का पक्ष था जो उच्चतम मूल्य है, कृत्रिम शांति कोई मूल्य नही है ना ही शांति जीवन का लक्ष्य हो सकती है। वास्तविक शांति कर्तव्यों के प्रति जागरुकता (awareness towards duties)शोषण का विरोध करनेऔर न्याय के समर्थन से ही मिल सकती है।

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