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Bhartiye Samaj Ki Jarurat Ek Jimmedaar Yuva

राजनीति धारणाएं और बदले भारत की तस्वीर 




राजनीति में भ्रष्टाचार तो बहुत साधारण-सी बात हो गई है।

आज की राजनीति वह राजनीति नहीं है, जिसमें राजनीतिज्ञों ने अपने परिवारों का, घरों का सुख त्याग कर जनता को अपनाया एवं ब्रिटिश सरकार द्वारा औंधे मुंह गिराए गए भारत को फिर उठाकर खड़ा किया ताकि ये देश अपने दम पर जी सके। आज की राजनीति केवल एक ही भाषा समझती है और वो है `धन'। कहा जाता है `जैसा धन वैसा मन'।राजनीति दो शब्दों का एक समूह है राज+नीति। (राज मतलब शासन और नीति मतलब उचित समय औरउचित स्थान पर उचित कार्य करने कि कला) अर्थात् नीति विशेष के द्वारा शासन करना या विशेष उद्देश्य को प्राप्त करना राजनीति कहलाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो जनता के सामाजिक एवं आर्थिक स्तर (सार्वजनिक जीवन स्तर)को ऊँचा करना राजनीति है
राजनीति का इतिहास अति प्राचीन है जिसका विवरण विश्व के सबसे प्राचीन सनातन धर्म ग्रन्थों में देखनें को मिलता है राजनीति कि शुरूआत रामायण काल से भी अति प्राचीन है। महाभारत महाकाव्य में इसका सर्वाधिक विवरण देखने को मिलता है चाहे वह चक्रव्यूह रचना हो या चौसर खेल में पाण्डवों को हराने कि राजनीति अरस्तु को राजनीति का जनक कहा जाता है। आम तौर पर देखा गया है कि लोग राजनीति के विषय में नकारात्मक विचार रखते हैं , यह दुर्भाग्यपूर्ण है ,हमें समझने की जरूरत है कि राजनीति किसी भी समाज का अविभाज्य अंग है ।महात्मा गांधी ने एक बार टिप्पणी की थी कि राजनीति ने हमें सांप की कुंडली की तरह जकड़ रखा है आवर इससे जूझने के सिवाय कोई अन्य रास्ता नहीं है ।राजनीतिक संगठन और सामूहिक निर्णय के किसी ढांचे के बगैर कोई भी समाज जिंदा नही रह सकता
राजनीति किसी भी राष्ट्र का वो दर्पण है जिसमे किसी भी देश की आर्थिक, नैतिक, धार्मिक सामाजिक परस्थितयो का दृश्टिगोचर है, परन्तु आज की वर्तमान राजनीती को देख कर जो दृश्य सामने आता है उस से तो कोई भी भारतीय शर्मशार हो जाये आज राजनीति सिर्फ एक धन कमाने का साधन मात्र बन गयी है| आज राजनीती में साम,दंड, भेद, से  इस राजनीती में प्रवेश करना चाहता है|


आज भारत में दूसरे देशों से सबसे ज्यादा युवा बसते हैं।14 वर्ष से लेकर 40 वर्ष तक के लोग सब युवा |परन्तु ये आज किस ऒर है ?

130 करोड़ की आबादी वाले भारत में गर आपसे पूछा जाए कि इस देश की सबसे बड़ी समस्या क्या है? स्वभाविक रूप से इस प्रश्न का कोई एक जवाब ढूंढ़ पाना आपके लिए आसान नहीं होगा आज भारत देश में इस  (14  से  40) युवा आयु के लोग सबसे बड़ी संख्या में मौजूद है। यह एक ऐसा वर्ग है जो शारीरिक एवं मानसिक रूप से सबसे ज्यादा ताकतवर है। जो देश और अपने परिवार के विकास के लिए हर संभव प्रयत्न करते हैं। आज भारत देश में 75% युवा पढ़ना लिखना जानता है। आज भारत ने अन्य देशों की तुलना में अच्छी खासी प्रगति की है। इसमें सबसे बड़ा योगदान शिक्षा का है। आज भारत का हर युवा अच्छी से अच्छी शिक्षा पा रहा है।उन्हें पर्याप्त रोजगार के अवसर मिल रहे हैं परंतु दुख की बात यह है कि आज का युवा भले ही कितना पढ़ लिख गया हो  यह लेकिन अपनी संस्कृति , देश और परिवार  प्रति जिम्मेदारियों को दिन - हर दिन भूलता जा रहा है ,भारत देश युवा समूह के लिए तैयार है जिसके लिए एक नई  युवा क्रांति की जरुरत है । लेकिन अफसोस की बात है कि देश का ये युवा समूह अपने रस्ते से भटक गया है । भारत का युवा वर्ग भारत में अपना योगदान देने की बजाय भारत को बर्बाद करने में कोई कसार नहीं छोड़ रहा है ।।130 करोड़ की आबादी वाले भारत में गर आपसे पूछा जाए कि इस देश की सबसे बड़ी समस्या क्या है? स्वभाविक रूप से इस प्रश्न का कोई एक जवाब ढूंढ़ पाना आपके लिए आसान नहीं होगा। गरीबी, भूखमरी, बीमारी, बेरोजगारी तमाम विषय आपके ज़हन में आएंगे।मगर इस के साथ साथ इस देश में वो ताकत है जो दूसरे किसी देश में नहीं मिट्टि के हर कण से एक वीर पैदा होता है। आज इस ही युवा ने अपनी छाप धरती से ले कर अंतरिष्क पहुंचा दी है।


राजनीती तो बस एक दर्पण है जो समाज को रिप्रेजेंट करता है उससे बदला नहीं जा सकता

हाँ पर समाज की सोच जरूर बदली जा सकती है.इसलिए  मेरा ज्यादा जोर समाज के सोच को बदलने का है ,समाज बदलेगा तो राजनीती अपने आप बदलेगी| परन्तु अगर इस का दूसरा पहलु देखा जाये तो समझने की बात ये है की इस समाज को बदलने का काम कौन करेगा वो जो पत्रिकारिता एक तरफ़ा बयां देती है, या वो नेता जो मंच से भड़काने वाले भाषण देता है और इस देश को अपने राजनीतक लाभ के लिए  इस्तेमाल करता है,या मंदिर, मस्जिद, चर्च,या गुरुदवारे से कोई धर्म गुरु कुछ कह दे और आज का भागता भारत हाथो में पत्थर ले कर सड़को पर निकल पड़ता है ||
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 हिन्दू-मुसलमानों के बीच बढ़ती नफरत  






युवा के हाथो में पत्थर दिए किसने ?



तभी शहर के बाहरी क्षेत्रों में कुछ शरारती युवा सक्रिय हो जाते है ।आते-जाते कई वाहनों पर पथराव कर उन्हें क्षतिग्रस्त कर देते है आते जाते वाहनों को रोककर उसके चालक की पिटाई की तथा वाहनों पर पत्थर बरसा कर उनमें तोड़फोड़ करना वाहनों में तोड़फोड़ उसमें बैठी सावारियों को पीटना ।गाड़ी में आग लगा दी जाती है उपद्रवियों को रोड बंद कर देने का आदेश कौन देता हैरेल मार्ग को उखड कर उस को बंद कर देने का आदेश कौन देता है ?


भारत में दंगों की शुरुआत आजादी के आंदोलन में छुपी हुई है, जब अंग्रेजों को हिन्दू और मुसलमानों की एकता तोड़कर यहां राज करना था। वे इस कार्य में सफल भी हुए। दंगों ने हिन्दू और मुसलमानों के बीच खाई पैदा कर दी जिसके परिणामस्वरूप भारत का विभाजन हुआ। जिन्ना और नेहरू जानते थे कि यह अंग्रेजों की चाल है लेकिन जिन्ना यह जानकर भी जान-बूझकर इस चाल का शिकार होना चाहते थे, खैर।

मौजूदा राजनेताओं में से बहुत से राजनेता का तो कोई धर्म है, जाति और ही उनकी कोई संतुलित विचारधारा। उनसे सवाल पूछा जाए कि क्या उनमें देशभक्ति की भावना है? आओ जानते हैं दंगों का इतिहास और सरकारों की लापरवाही।अंग्रेजों के शासन काल में यूं तो बहुत सारे दंगे हुए। 1857 की क्रांति के बाद से ही हिंदू और मुसलमानों की एकता को तोड़ने का काम चल रहा था। लेकिन 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद ब्रिटिश सरकार ने सांप्रदायिक दंगे कराकर उनका हिन्दू-मुसलमानों के बीच खूब प्रचार करना शुरू किया।

इस झूठे प्रचार के कारण हिन्दू-मुसलमानों के बीच नफरत बढ़ती गई जिसका परिणाम यह हुआ कि 1924 में कोहाट में बहुत ही अमानवीय ढंग से हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए। इस दंगे में दोनों ही समुदायों के लोग मारे गए।

अंग्रेज अपनी चाल में कामयाब हो गए थे और उनको भारत के कई टुकड़े करने के लिए एक कारण मिल गया था। अंग्रेज हिन्दू-मुसलमान के बीच दंगे ही नहीं चाहते थे बल्कि मुसलमानों के बीच शिया-सुन्नी और हिंदुओं के बीच प्रांतवाद और दलित-सवर्ण की आग भड़काने का प्लान बनाया और वे इसमें सफल भी हुए जिसका परिणाम हम आज तक भुगत रहे हैं ||

कलकत्ता दंगा (1946)

सन 1946 में कलकत्ता में हुए इन दंगों को “डायरेक्ट एक्शन दिवस” के नाम से भी जाना जाता है. इसमें 4,000 लोगों ने अपनी जानें गंवाई थी, और 10,000 से भी ज़्यादा लोग घायल हुए थे. हिंदू-मुस्लिम समुदाय में होने वाली हिंसा के कारण यह दंगा हुआ था.
सिख-विरोधी दंगा (1984)
31 अक्टूबर, 1984 को इंदिरा गांधी की मौत पर इस दंगे की शुरुआत हुई थी. इंदिरा गांधी के सिख अंगरक्षकों ने ही उनकी हत्या कर दी. इसके परिणामस्वरूप अगले ही दिन इस दंगे की शुरुआत हुई जो कई दिनों तक चला. इस दंगे में 800 से ज़्यादा सिखों की हत्या हुई थी.


 कश्मीर दंगा (1986)


यह दंगा कश्मीर में मुस्लिम कट्टरपंथी द्वारा कश्मीरी पंडितों को राज्य से बाहर निकालने के कारण हुआ था. इस दंगे में 1000 से भी ज़्यादा लोगों की जानें गयी थीं और कई हज़ार कश्मीरी पंडित बेघर हो गये थे.

वाराणसी दंगा (1989)


वाराणसी को आस्था का शहर माना जाता है. इस पवित्र शहर में क्रमवार 1989, 1990 और 1992 में भयंकर दंगे हुए थे. यह दंगे मुख्यत: हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच पूजा विवाद के कारण हुए थे. इस हिंसा में कई लोगों की जानें गईं और कई लोग बेघर हुए.

भागलपुर दंगा (1989)

भागलपुर दंगा 1947 के बाद, भारतीय इतिहास के सबसे क्रूर दंगों में से एक था. यह दंगा अक्टूबर 1989 को भागलपुर में हुआ था. इसमें मुख्य रूप से हिन्दू और मुस्लिम समुदाय के लोग शामिल थे. इसके कारण करीब 1000 से ज़्यादा निर्दोषों को अपनी जानें गंवानी पड़ी.


 मुंबई दंगा (1992)


इस दंगे की मुख्य वजह बाबरी मस्जिद का विध्वंस था. इस हिंसा की शुरुआत दिसंबर में 1992 में हुई थी जो 1993 के जनवरी तक चली. इसमें करीब सैकड़ों लोगों की जानें गईं.


गुजरात दंगा (2002)


वैसे तो देश में कई दंगे हुए, लेकिन गुजरात दंगे को देश के सबसे भयंकर दंगे के रूप में देखा जाता है. इसकी शुरुआत 2002 में हुई थी, जब कारसेवक अयोध्या से गुजरात साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन से लौट रहे थे. इसी बीच कुछ असामाजिक तत्वों ने इस ट्रेन की कई बोगियों को गोधरा में जला दिया. इस घटना में 59 कारसेवकों की मौत हो गई. बाद में प्रतिकार के रूप में यह घटना एक बड़े दंगे के रूप में तब्दिल हो गयी, जिसमें करीब 2000 लोगों की जानें गईं और लाखों लोगों को बेघर होना पड़ा.


अलीगढ़ दंगा (2006)


अलीगढ़ को उत्तर प्रदेश का सांप्रदायिक दंगों से ग्रस्त शहर भी कहा जाता है. 5 अप्रैल 2006 को हिन्दुओं के पवित्र पर्व रामनवमी के अवसर पर हिंदू और मुसलमानों के बीच बहुत हिंसक दंगा हुआ, जिसमें 6-7 लोगों की मौत हो गई. यहां अकसर इस तरह की घटनाएं होती रहती हैं.


 देगंगा दंगा (2010)


पश्चिम बंगाल के देगंगा में कुछ अतिवादियों ने हिन्दू मंदिरों को तोड़ दिया, और मंदिर के खजाने को लूट लिया. इसके परिणाम में कई लोगों की हत्याएं हुईं और कई लोगों को बेघर होना पड़ा.


असम दंगा (2012)


यह दंगा असम के कोकराझार में रह रहे बोडो जनजाती और बांग्लादेशी घुसपैठियों के बीच हुआ था. इस दंगे में करीब 80 लोगों की मौत हुई और लाखों लोग बेघर हुए. यह मानव इतिहास का सबसे भयावह दंगा है.


मुज़फ्फरनगर दंगा (2013)


उत्तरप्रदेश में कई ऐसे जिले हैं जो मुस्लिम बहुल हैं. मुज़फ्फरनगर उन्हीं जिलों में से एक है. 2013 में हिंदू और मुसलमान समुदाय के बीच भयानक दंगा हुआ जिसमें 48 लोगों की जानें गईं और 93 लोग घायल हुए. हालांकि यह मामला अब पूरी तरह से राजनीतिक हो चुका है.

दिल्ली में दंगा (2020)

जाफराबाद, चांद बाग, मौजपुर, भजनपुरा, करदमपुरी, गोकुलपुरी, खजूरी और करावल नगर हिंसा के केंद्र रहे। गाड़ियों, दुकानों और एक पेट्रोल पंप को दंगाइयों ने आग के हवाले कर दिया। जो भी सामने दिखा उसे निशाना बनाया गया। खबरों के मुताबिक धर्म के आधार पर पहचान कर हमले किए गए। जाफराबाद के आस-पास के इलाकों में सुबह 10.30 बजे ही दंगे शुरू हो गए।  यमुना नहर के दोनों तरफ से मोर्चाबंदी हुई और पत्थरों की बरसात शुरू हो गई। 48 की मौत और 300 से ज्यादा घ्याल.
मगर दंगा होने के बाद  हर घर कहता है इन से तो हमरा बरसों का रिश्ता है,हम साथ खेले बड़े हुए मिल कर हर त्यौहार में शामिल होते है,


हम हिन्दू और मुस्लिम नहीं भाई है तो इन भाइयों के हाथों में पत्थर और तेज़ाब किस ने दिया ? कौन है वो दोषी जिस ने युवा भारत को घुटनो पर ला दिया है ?उनको कौन बुलाते है क्यूँ इस सवाल का उत्तर उनसे नहीं पूछा जाता जिस को चुन कर ये समाज कुर्सी पर बिठाते है ?


लेकिन कितने ऐसे लोग हैं जिन्हें दंगे करवाने के ज़ुर्म में सज़ा मिली? शायद यही कारण है कि इस तरह की घटनाएँ आज के भारत में भी होती रहती हैं.मैं कहूँ कि न्याय मिल गया है तो वे कहेंगे कि आपने दर्द देखा ही कहां हैं? आप कैसे कह सकते हैं कि न्याय मिला या नहीं मिला? जिसने चोट खाई है, जिसे दर्द हुआ है, वही इसका ज़बाव दे सकता है."

देश के कई महात्मा कहा करते हैं कि हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है. लेकिन इंसान बहकावे में आकर, धर्म और आस्था की आड़ में एक-दूसरे का ख़ून बहाता है. इन सब फसादों के कारण हमारा विकास और देश की प्रगति रूक रही है||


बदलते भारत की राजनीति


                                                             किसी की गलतियां निकलना बहुत आसान है 
                                                       मगर खुद की गलतियां मान जाना उस में सुधार करना 
                                                                            कठिन काम है||

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