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Bharat Ki Sansakrtik Ki Ek Pahachaan Bharatanatyam Nrty Kala

भारत की सांस्‍कृतिक की पहचान का एक महत्‍वपूर्ण हिस्‍सा "नृत्य कला" 

संस्कृति किसी भी देश, जाति और समुदाय की आत्मा होती है। संस्कृति से ही देश, जाति या समुदाय के उन समस्त संस्कारों का बोध होता है जिनके सहारे वह अपने आदर्शों, जीवन मूल्यों, आदि का निर्धारण करता है। अतः संस्कृति का साधारण अर्थ होता है-संस्कार, सुधार, परिष्कार, शुद्धि, सजावट आदि।आज के समय में सभ्यता और संस्कृति को एक-दूसरे का पर्याय समझा जाने लगा है जिसके फलस्वरूप संस्कृति के संदर्भ में अनेक भ्रांतियाँ पैदा हो गई हैं। लेकिन वास्तव में संस्कृति और सभ्यता अलग-अलग होती है।भारत के हर प्रदेश में कला की अपनी एक विशेष शैली और पद्धति है जिसे लोक कला के नाम से जाना जाता है। लोककला के अलावा भी परम्‍परागत कला का एक अन्‍य रूप है जो अलग-अलग जनजातियों और देहात के लोगों में प्रचलित है। इसे जनजातीय कला के रूप में वर्गीकृत किया गया है। भारत की लोक और जनजातीय कलाएं बहुत ही पारम्‍परिक और साधारण होने पर भी इतनी सजीव और प्रभावशाली हैं कि उनसे देश की समृ‍द्ध विरासत का अनुमान स्‍वत: हो जाता है।भारत के आंचलिक नृत्‍य जैसे कि पंजाब का भांगडा, गुजरात का डांडिया, असम को बिहु नृत्‍य आदि भी, जो कि उन प्रदेशों की सांस्‍कृतिक विरासत को अभिव्‍यक्‍त करते हैं, भारतीय लोक कला के क्षेत्र के प्रमुख दावेदार हैं। इन लोक नृत्‍यों के माध्‍यम से लोग हर मौके जैसे कि नई ऋतु का स्‍वागत, बच्‍चे का जन्‍म, शादी, त्‍योहार आदि पर अपना उल्‍लास व्‍यक्‍त करते हैं। 

Kannada Bhakti Song 'Bhagyada Lakshmi Baramma' Performed By Niharika 

Including the lovely little girl, they make up 'ashta Lakshmi'. Lovely draped in traditional saris and decked with the glittering jewels bring immense happiness to the viewers. This proves that it is the NOT the length of the dance but the quality of the performance that gives the viewers such a satisfaction. 

भरतनाट्यम नृत्य एक अलग पहचान रखता है

भरतनाट्यम नृत्य अत्यंत प्राचीन नृत्यों में से एक है। यह भारतीय शास्त्रीय नृत्य की एक प्रमुख शैली है।इस नृत्य को चधिर अट्टम भी कहते हैं। जिसका जन्म तमिलनाडु में हुआ था। परंपरागत रूप से, भरतनाट्यम एक एकल नृत्य है जो विशेष रूप से महिलाओं द्वारा किया जाता है, और यह दक्षिण भारतीय धार्मिक विषय और आध्यात्मिक विचारों को विशेष रूप में व्यक्त करता है।यह भरत मुनि द्वारा रचित नाट्य शास्त्र कालजयी ग्रंथ पर आधारित है। इसका अस्तित्व प्राचीन तमिल महाकाव्य सिलप्पाटिकाराम में उल्लेख किया गया है। भरतनाट्यम भारत की सबसे पुरानी शास्त्रीय नृत्य परंपरा हो सकती है।यह नृत्य शैली चिदम्बर के प्राचीन मंदिरों में देखने को मिलती है। इस नृत्य का नाम ‘भरत्नाट्यम’ आधुनिक है, पहले इसे सादिर, दासी अट्टम और तन्‍जावूरनाट्यम नाम से जाना जाता था।ऐसा कहा जाता है कि इस नृत्य का प्रचलन तमिलनाडु के देवदासियों के द्वारा हुआ था। शुरुआत में इस नृत्य को सम्मान नहीं मिला। लेकिन कृष्ण अय्यर और रुक्मणि देवी के प्रयासों से यह नृत्य को बीसवीं शताब्दी में सम्मान मिला। इस नृत्य को 19 – 20 वीं शताब्दी में पुनर्जीवित किया गया।

इस नृत्य को तीन अंगों में विभाजित किया गया है जो निम्नलिखित हैं 

नाट्य – इसमें नृत्य प्रस्तुत करके कथा बताई जाती है।
नृत – इसमें तालों का उपयोग किया जाता है।
नृत्य – इसमें नृत और नाट्य दोनों होते हैं।

भरतनाट्यम नृत्य में भाव, मनः स्तिथि,  स्वर माधुर्य, संगीत, राग और ताल का बहुत महत्त्व है। भरतनाट्यम नृत्य के लिए एक मंडली होती है। जिसमें सबकी अलग – अलग भूमिका होती है। इस मंडली में एक करताल वादक, एक वीणा वादक, एक मृदंग वादक, एक बांसुरी वादक और एक गायक होता है।एक व्यक्ति नृत्य की कविता का पाठ करता है जिसे नट्टुवनार कहते हैं। भरतनाट्यम नृत्य मानव शरीर के अंदर आध्यात्म को प्रकट करता है। भरतनाट्यम को अग्नि नृत्य भी कहा जाता है। यह ऐसा नृत्य है जिसे मंच के लिए आयोजित किया गया है। यह एक भावयुक्त, भक्तियुक्त नृत्य है। इस नृत्य में संगीत के आधार पर पैर को रखा जाता है और अँगुलियों के द्वारा विभिन्न तरह की मुद्राएं बनायीं जाती हैं।चेहरे पर भावों का दिखना जरुरी है। इस नृत्य की वेश – भूषा अत्यंत आकर्षक होती है। आँखों का मेकअप अत्यंत मनमोहक होता है। बालों को पारम्परिक तरीके से पुष्पों के द्वारा सुसज्जित किया जाता है। परिधान के रूप में साड़ी होती है जिसमें बहुत सारी चुन्नट होती हैं। इसमें नृत्य के लिए विभिन्न तरह के आभूषण भी पहने जाते हैं।नृत्य के समय पैरों में घुँघरू बांधना जरुरी है। इस नृत्य की प्रशंसकों द्वारा मांग होने पर विदेशों में भी प्रस्तुत किया जाता है। इस नृत्य से जुड़े कई कलाकार हैं, जिनमें से यामिनी कृष्णमूर्ति , लीला सैमसन , रुकमणी देवी, अरुण्डेल , सोनल मानसिंह , मृणालिनी साराभाई , वैजयंती माला , पदमा सुब्राम्हणयम , टी. बाला सरस्वती , मालविका सरकार , एस. के. सरोज, रामगोपाल आदि प्रमुख हैं।

रुकमणी देवी अरुण्डेल भारत की सबसे पहली प्रसिद्ध कलाकार हैं।  वास्तव में भरतनाट्यम एक ऐसी कला है जो शरीर को पवित्र करती है। यह एक कलात्मक योग है जो आध्यात्म प्रकट करता है।


भारत की सांस्‍कृति वसुधैव कुटुंबकम

 वसुधैव कुटुंबकम
भारतीय विचारक आदिकाल से ही संपूर्ण विश्व को एक परिवार के रूप में मानते रहे हैं इसका कारण उनका उदार दृष्टिकोण है।हमारे विचारकों की ‘उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम’ के सिद्धांत में गहरी आस्था रही है। ववस्तुतः शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शक्तियों का विकास ही संस्कृति की कसौटी है। इस कसौटी पर भारतीय संस्कृति पूर्ण रूप से उतरती है।

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