"Justice for Nirbhaya "
2012 में हुआ दिल्ली का बहुचर्चित गैंगरेप-मर्डर केस. यौन हिंसा का ऐसा केस जिसने पूरे देश को दहलाकर रख दिया था लेकिन हम 2020 के मार्च महीने में भी दोषी को सजा मिले इस का इंतज़ार कर रहे है. घटना को सात साल हो गए मगर सजा आज तक नहीं मिली है |
16 दिसंबर, 2012 दिल्ली देश की राजधानी के मुनीरका में 6 लोगों ने चलती बस में पैरामेडिकल की छात्रा से गैंगरेप किया.दरिंदगी भी शयद उस दिन उन हैवानो के आगे शर्मसार हो गयी होगी, दरिंदगी की वो सारी हदें पार कर गए, जिसे देखकर कोई दरिंदा भी दहशत में आ जाए. वारदात के वक्त पीड़िता का दोस्त भी बस में था. दोषियों ने उसके साथ भी मारपीट की थी. इसके बाद युवती और दोस्त को चलती बस से बाहर फेंक दिया था.
बहुत से सवालों की वजह मिल जाएगी और उनका हल भी बस आप को अपने आप से सवाल पूछने है |
वहीं दूसरी और भारत में एक केस ये भी आया जहाँ पुलिस ने एनकाउंटर कर के सरे देश को का जश्न मनाना का मौका दिया जी हाँ हैदराबाद गैंगरेप: आरोपियों का एनकाउंटर होना सही था या फिर यह गलत ? इस का फैसला क्या होना चाइए ये आप मुझ से बेहतर जानते है |
हैदराबाद के डॉक्टर गैंगरेप और पीड़िता को जला कर मारने के केस के चारों आरोपियों को एनकाउंटर में मार गिराया गया है। इस एनकाउंटर से पीड़िता का परिवार और समाज या ये कहे की सरे देश के लोग खुश थे ,मगर जिधर सारा देश खुश था उधर एनकाउंटर के बाद पुलिस के खिलाफ केस दर्ज करने की मांग की गयी |
अब सबसे बड़ा सवाल |की हमरा देश किस तरफ बढ़ रहे हैं? क्या दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भीड़तंत्र की तरफ बढ़ रहा है? रेप का हर मामला सामने आने के बाद मांग उठती है कि रेपिस्ट का लिंग काट दिया जाए. उसे सरेराह फांसी पर लटका दिया जाए, ऐसे लगता है जैसे कुछ दिन या महीने तक भीड़ ‘इंसाफ़’ दिला कर ही रहेगी फिर कहीं और कुछ होता है और पहले से तिलमिलाई भीड़ खुद से इन्साफ करने पर उतारू हो जातीहै बस शक की बिनहा पर किसी को पिट दिया, मार दिया | मगर ये सोच बर्बर और क्रूर सोच है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र पर ये एक बदनुमा दाग बन कर रह जाती है.
न्यायालय की देहलीज़ पर बेबस ||
दोषियों को सज़ा मिलनी चाहिए. क़ानून के हिसाब से. और रेप-हत्या, बच्चों के साथ यौन-हिंसा जैसे मामलों में तो कड़ी से कड़ी सज़ा होनी चाहिए. चाहे सज़ा मौत की हो या उम्रकैद की. लेकिन फैसला करने, सज़ा देने का काम न्याय पालिका का है. पुलिस का नहीं. न ही आम जनता का. हमें ये बात याद रखनी चाहिए |
निर्भया की मां आशा देवी ने कहा, इंसाफ मिलने में देरी हो रही है. इससे समाज की अन्य पीड़िताएं प्रभावित होती हैं. दोषियों को जल्द से जल्द फांसी पर लटकाना चाहिए, ताकि निर्भया को न्याय मिल सके की हमारा संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है ,बस इस देश को इस समाज को ये सोचना होगा की हम एक दुखी और बेबस माँ का साथ दें या दोषियों का क्यों की आज भी इस न्याय पालिका पर एक माँ को सात साल से भरोसा है ||
हम जो कभी दूसरों की मदद के लिए आगे नहीं आते या वो जो अकेले औरत को अपनी जागीर समझ लेते है कहीं न कहीं हम सब इस के दोषी है ......................... जीत ठाकुर
वह क्या इन्साफ है ?
निर्भया हर वो महिला जो मौत के बाद भी अपने न्याय के लिए न्यायालय की देहलीज़ पर बेबस | वह क्या इन्साफ है ?गुनहगार |
गुनहगार जिन्हें कब सजा मिलेगी ? इस का असली दोषी कौन?
2012 में हुआ दिल्ली का बहुचर्चित गैंगरेप-मर्डर केस. यौन हिंसा का ऐसा केस जिसने पूरे देश को दहलाकर रख दिया था लेकिन हम 2020 के मार्च महीने में भी दोषी को सजा मिले इस का इंतज़ार कर रहे है. घटना को सात साल हो गए मगर सजा आज तक नहीं मिली है |
16 दिसंबर, 2012 दिल्ली देश की राजधानी के मुनीरका में 6 लोगों ने चलती बस में पैरामेडिकल की छात्रा से गैंगरेप किया.दरिंदगी भी शयद उस दिन उन हैवानो के आगे शर्मसार हो गयी होगी, दरिंदगी की वो सारी हदें पार कर गए, जिसे देखकर कोई दरिंदा भी दहशत में आ जाए. वारदात के वक्त पीड़िता का दोस्त भी बस में था. दोषियों ने उसके साथ भी मारपीट की थी. इसके बाद युवती और दोस्त को चलती बस से बाहर फेंक दिया था.
जांच में पुलिस को यह भी पता चला कि इस नाबालिग लड़के ने गैंगरेप के दौरान पीड़ित लड़की पर कई जुल्म किए। इस लड़के ने ही दो बार बड़ी बेरहमी से लड़की से बलात्कार किया था। उसकी वहशियाना हरकतों की वजह से ही छात्रा की आंतें तक बाहर आ गई थीं। उस दौरान वो बहादुर लड़की जूझ रही थी, बचने के लिए आरोपियों को दांत से काट रही थी, लात मार रही थी लेकिन शायद उसने भी इस बात की कल्पना नहीं की थी कि लोहे की जंग लगी रॉड के इस्तेमाल से उसके साथ भयानक टॉर्चर होगा। निर्भया की आंतों को नुकसान पहुंचने की वजह से उसके कई बार ऑपरेशन करने पड़े। आखिरकार डॉक्टरों को उसकी आंतें ही काटकर बाहर निकालनी पड़ीं, पूरे शरीर में इंफेक्शन फैल गया, उसे सिंगापुर इलाज के लिए ले जाया गया, लेकिन खुद को नाबालिग बताने वाले उस बर्बर आरोपी के आगे दवा और दुआ फेल हो गई और दर्द से लड़ते हुए पीड़ित ने दम तोड़ दिया।नाबालिग दोषी को रिमांड होम भेजा गया ,
काश "बाल बलात्कारी" की रिहाई के विरोध में भी कोई एक बुद्धिजीवी अपना अवार्ड लौटा देता तो बात कुछ और होती ||
अब कोई "शर्मिंदा" नही है, किसी को "डर" नही लग रहा, अब कोई "मोमबत्ती" गैंग सड़क पर नहीं उतरा "Justice for Nirbhaya "क्योंकि "अभी "पीड़िता की माँ को और चक्कर लगाने है आखिर क्यूँ कहाँ चूक है ?अब सवाल जिस का उत्तर आप को इस न्यायपालिका और इस अंधे बेहरे समाज से पूछना है की जबनिर्भया काण्ड के सभी गुनहगार निहायत गरीब तबके से हैं,कोई बस ड्राइवर है तो कोई कंडक्टर या क्लीनर , सुप्रीम कोर्ट में कोई वकील एक बार की हीयरिंग की फ़ीस 15 लाख तक होती है तो ये गरीब लोग लगातार धड़ाधड़ रिव्यु पिटीशन या क्यूरेटिव पिटीशन कैसे लगा रहे हैं,इतनी भारी भरकम फीस देने के लिए पैसा आ कहाँ से रहा है ?बहुत से सवालों की वजह मिल जाएगी और उनका हल भी बस आप को अपने आप से सवाल पूछने है |
वहीं दूसरी और भारत में एक केस ये भी आया जहाँ पुलिस ने एनकाउंटर कर के सरे देश को का जश्न मनाना का मौका दिया जी हाँ हैदराबाद गैंगरेप: आरोपियों का एनकाउंटर होना सही था या फिर यह गलत ? इस का फैसला क्या होना चाइए ये आप मुझ से बेहतर जानते है |
हैदराबाद के डॉक्टर गैंगरेप और पीड़िता को जला कर मारने के केस के चारों आरोपियों को एनकाउंटर में मार गिराया गया है। इस एनकाउंटर से पीड़िता का परिवार और समाज या ये कहे की सरे देश के लोग खुश थे ,मगर जिधर सारा देश खुश था उधर एनकाउंटर के बाद पुलिस के खिलाफ केस दर्ज करने की मांग की गयी |
अब सबसे बड़ा सवाल |की हमरा देश किस तरफ बढ़ रहे हैं? क्या दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भीड़तंत्र की तरफ बढ़ रहा है? रेप का हर मामला सामने आने के बाद मांग उठती है कि रेपिस्ट का लिंग काट दिया जाए. उसे सरेराह फांसी पर लटका दिया जाए, ऐसे लगता है जैसे कुछ दिन या महीने तक भीड़ ‘इंसाफ़’ दिला कर ही रहेगी फिर कहीं और कुछ होता है और पहले से तिलमिलाई भीड़ खुद से इन्साफ करने पर उतारू हो जातीहै बस शक की बिनहा पर किसी को पिट दिया, मार दिया | मगर ये सोच बर्बर और क्रूर सोच है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र पर ये एक बदनुमा दाग बन कर रह जाती है.
न्यायालय की देहलीज़ पर बेबस ||
निर्भया की मां आशा देवी ने कहा, इंसाफ मिलने में देरी हो रही है. इससे समाज की अन्य पीड़िताएं प्रभावित होती हैं. दोषियों को जल्द से जल्द फांसी पर लटकाना चाहिए, ताकि निर्भया को न्याय मिल सके की हमारा संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है ,बस इस देश को इस समाज को ये सोचना होगा की हम एक दुखी और बेबस माँ का साथ दें या दोषियों का क्यों की आज भी इस न्याय पालिका पर एक माँ को सात साल से भरोसा है ||
गुनहगार कौन है?
हम जो कभी दूसरों की मदद के लिए आगे नहीं आते या वो जो अकेले औरत को अपनी जागीर समझ लेते है कहीं न कहीं हम सब इस के दोषी है ......................... जीत ठाकुर
1 Comments
जय भारत | जय हिन्द| यदि आपको यह आर्टिकल अच्छा लगा तो जरूर से इसे शेयर करें और कमेंट भी करे|
ReplyDeleteआपको जीवन में आगे बढ़ने,और जीवन में आई कठिनाइयों का सामना करने मैं हिम्मत और साहस की जरुरत है अगर आप में ये साहस है तो आप खुद को और इस देश को बदल सकते है,खोजोंगे अगर तो रास्ते मिलेंगे, हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं,जिस दिन लोग ऐसी सोच रखना शुरू कर देंगे, उस दिन हमारा भारत सही मायने मे महान कहलाएगा,धन्यवाद, |जय हिन्द| |जय भारत |अगर आप को मेरे विचार अच्छे लगे तो प्लीज़,आप अपने विचार दें||