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Corona Virus Lockdown In India 24 March To 03 May 2020

कोरोनावायरस से लॉकडाउन 2020

लॉकडाउन के चलते घरों में कैद हुई  दुनिया भर की जनता, आज हर कोई अपने घरो में रहने को मजबूर है - परेशान है,कोरोना वायरस का संक्रमण जितनी तेजी से फैला है उसको लेकर आज हर देश की सरकार भी डर गयी है. दुनिया के सबसे ताकतवर देशो के पास इस वायरस का कोई इलाज नहीं है. इस वायरस के सामने अमरीका भी संघर्ष कर रहा है ,अमरीका, इंग्लैंड, ओस्ट्रिलिया, इटली, कनाडा  और भी न जाने कितने ही देश जो दुनिया के दूसरे हिस्सों में परफेक्ट मुल्क के तौर पर देखे जाते है, जहां हर कोई किसी भी कीमत पर आकर बस जाना चाहता है लोग अपनी जिंदगी को इन देशो में खुद को सुरक्षित मान कर अपने जीवन को जीना चाहते है  लेकिन ये कुछ दिनों पहले की बात लग रही है. इन दिनों  दुनिया का कोई भी देश हो हर देश की एक दूसरी ही तस्वीर उभरी है, कोरोना वायरस से अब तक  दुनिया भर में  120,435 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है,संक्रमण इतना तेजी से फैल रहा है की आज दुनिया भर के 20 लाख  ज्यादा लोग इस वायरस की चपेट में आ गए है| इस आंकड़े के बढ़ने की आशंका बनी हुई है , किसी को अंदाजा नहीं है कि कितनी खराब स्थिति होगी और कितने लंबे समय तक यह संकट बना रहेगा, इस संकट से पार पाने के लिए ही आज भागती हुयी दुनिया पर मनो ब्रेक लग गयी है लोग घरो मे बंद है क्यों की जान है तो जहाँ है|

'भारत' सबसे बड़े देश लॉकडाउन 

 केरल में 30 जनवरी 2020 को कोरोनावायरस के पहले मामले की पुष्टि की, जब वुहान के एक विश्वविद्यालय में पढ़ रहा छात्र भारत लौटा था, इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 मार्च को सभी नागरिकों को 22 मार्च रविवार को सुबह 7 से 9 बजे तक 'जनता कर्फ्यू' करने को कहा था। मोदी ने कहा था: "जनता कर्फ्यू कोविड-19 के खिलाफ एक लंबी लड़ाई की शुरुआत है"। दूसरी बार राष्ट्र को संबोधित करते हुए, 24 मार्च को, उन्होंने 21 दिनों की अवधि के लिए, उस दिन की मध्यरात्रि से देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की।उन्होंने कहा कि कोरोनावायरस के प्रसार को नियंत्रित करने का

                       'भारत' सबसे बड़े देश लॉकडाउन 

एकमात्र समाधान सामाजिक दूरी है। भारत से पहले कोरोना वायरस दुनिया के कई देशों में अपना भयानक रूप दिखा चुका है. चीन, स्पेन, ईरान, इटली और अमेरिका अबतक की सबसे भयावह बीमारी का सामना कर रहे हैं. भारत से पहले इन देशों ने भी अपने यहां लॉकडाउन का ऐलान किया था, जिसका कुछ हद तक असर भी दिखा है.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में कई बार इसका जिक्र किया है कि विशेषज्ञों ने कोरोना वायरस की चेन को तोड़ने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग जारी रखने की बात कही है. इसी वजह से देश में लॉकडाउन लगाया गया है जो अब 24 मार्च से 03 मई तक हो गया है | सभी तरह के आवागमन पर रोक है , सिर्फ देश में आवश्यक  सेवाएं ही चालू  रहेगी जीवन वायपी सामान की कोई कमी नहीं होने दी जायगी। खाद्य दुकानें, बैंक और एटीएम, पेट्रोल पंप, अन्य आवश्यक वस्तुएं और उनके विनिर्माण जैसी सेवाओं को छूट दी गई है।


क्या बदल गया अप्रैल आते आते  

कुछ त्रासदियों का बोझ इतना ज़्यादा  इतना बड़ा होता  है कि हमारा दिल उन्हें उठा नहीं पाता है. तो फिर ये तबाही कोरोना वायरस जो बेफिक्र  गलियों में टहलते हुए, सडको पर खुली हवा में,  दुकानों के पड़े हुए सामान पर, एक इंसान से दूसरे इंसान से खाने में, फूलों में और हर चीज़ में पैवस्त हो जाती है ये त्रासदी बस सब को अपने आगोश में लेती जा रही है ये तबाही मंजर हवा पर सवार हो कर आगे बढ़ता ही चला जा रहा है|इस  महात्रासदी का सामना तो भारत ही नहीं दुनिया के हर देश करने के लिए अपनी जी जान लगा रहे है हर कोई अपना भरपूर योगदान दे रहा है हर कोई अपने हिसाब से सरकार की यथा संभव मदद भी कर रहा है,हर कोई इस जंग से जितना चाहता है कोई मधुर सा संगीत लिख रहा है कोई गा रहा है , कोई खाना बनाना सिख रहा है, हर कोई बस इस कोरोना को हराना चाहता है बस भारत जैसे देश में इस महामारी को तो लोगो ने जीतने के लिए बहुत से गरीबो की मदद उनको खाना पानी और भी बहुत तरह से मदद पहुँचाने का काम किया है, देश को जोड़ कर रखने के लिए हर किसी का योग दान है,

 मैंने तय किया है कि मैं अपनी यादों को बिसरने नही दूंगा . अब मेरे पास उन यादों को संजोने के लिए अभी का ही वक़्त है. अभी मेरा मुस्तक़बिल बहुत दूर खड़ा है.इस त्रासदी का सामना करने के लिए मैंने ख़्वाब देखने शुरू किए हैं. मैंने तय किया है कि मैं अपनी यादों को बिसरने नहीं दे सकता . अब मेरे पास उन यादों को संजोने के लिए वक़्त ही वक़्त है. अभी मेरा मुस्तक़बिल दूर खड़ा है .और हाल की हक़ीक़त ये है कि मरने वालों की तादाद बढ़ती जा रही है इस बीमारी से आज हर कोई परेशां है लोगो का खाने का ठिकाना और उनके काम का ठिकाना दोनों ही बदल गए है, ऐसी मुसीबत के मारे दूर के गांवों से शहरों में आए मज़दूर अपने घरों को पैदल लौट रहे थे ये दिल्ली ही नही शयद भारत में हर राज्य में हुआ होगा, लॉक डाउन में दिल्ली से उत्तर प्रेदश के मज़दूर निकल कर अपने घर वापिस जाने पर कैसे मजबूर हो गए, बांद्रा मुंबई और न जाने कहाँ कहाँ से ऐसे खबरे सुनने को मिले |


तन्हाई की भी एक संक्रमण है (Corona -Virus Lockdown) के जैसे  

ये किसी उम्रदराज  की ज़िंदगी का कोई अंतरंग क़िस्सा नहीं है. मुझे ये मालूम है कि ऐसे माहौल में खिड़की के पास बैठ कर क्या लिखा जाये जब आप बेफ़िक्र हों कि आपके रेफ्रिजरेटर में सामान ठसाठस भरा है. क्योंकि खिड़की के उस पार बाहर जो दुनिया है, वहां दर्द बेशुमार है, ग़ुरबत है,अभाव है,ये की जब दरबाजे के बहार मौत तमाशा कर रही हो, ये सिर्फ़ एक वायरस से फैली महामारी भर नहीं है. दरअसल ये तन्हाई की भी एक संक्रमण है. मैं अकेले ही जी रहा हूँ साथ के लिए  एक और मेरे साथ रहते है हम एक फ्लैट में एक साथ रहते है मगर वो अपने में  रहते है और मैं अपने में, उनके ख्याल मेरे खयालो से मेल नही खाते  और मैं और सच कहूँ तो कहीं न कहीं आज बहार की दुनिया से खुद को इतना अकेले महसूस नही करता जितना हम शयद खुद से अकेले है क्या आज हम ऐसे दुनियां में जी रहे है जिस में हम न जाने कबसे इस लॉक डाउन के शिकार है, अक्सर रातों को नींद नही आती मैं सोचता हूँ की इंसान का जीवन क्या है, क्या ऐसे ही घुट घुट कर मरने के लिए इंसान अपने आप को कब इस तन्हाई के संक्रमण से बहार निकलेगा , कभी बंद खिड़की के पीछे कभी बंद अरमानो के पीछे, इस खुले आस्मां को देखा जाता है| कब वो आस्मां के निचे दोनों बाहें खोल कर इस लॉक - डाउन को तोड़ेगा | 

एक अकेलेपन

घर में अकेलेपन जैसा कुछ जो खली सा लगता है सब है मगर कोई नहीं , इंसान कभी बंद दरवाजो के पीछे  से कुछ सुनने की कोशिश करता है , अक्सर बंद कमरे में मेरे अरमानो से कोई बात करता  सुनाई देता है कभी कभी कोई इन अरमानो की और अपने क़दमों  धीरे धीरे  से मेरी और आने की कोशिश  करता है, कभी घर की घंटी बजती है और कोई आवाज़ आती है,  यादों का कोई झोंका सा आता है और फिर आप जाने किन ख़यालों में गुम हो जाते हैं.'आप घर में अकेले है या नहीं ये आप के सिवा  कौन जान सकता है |
जितना सीखा इस दुनिया से बस उतना ही तजुर्बा काग़ज़ पर बस इसलिए उकेर रहा हूं कि शायद इससे मुझे कुछ क़रार मिले. पर, लिख कर भी मुझे कोई तसल्ली नहीं मिलती.

ना जाने ये दुनिया कब से इस लॉक डाउन की शिकार है एक दुनिया है साथ कहने को  मगर साथ कोई नहीं  , सरपट भागती दुनिया का मोहरा बस , क्या सच इंसान जीवन जीता कम और ढोता ज्यादा है ?
जीत ठाकुर

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